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________________ लिए यह कुदेवादि को पूजता है परन्तु कोई भी देव इसे मृत्यु से बचाने में समर्थ नहीं है अतः उनको पूजना-वंदना मिथ्याभाव है परन्तु राग-द्वेष रहित सर्वज्ञ अरहंत देव के श्रद्धान से मोक्ष की प्राप्ति होती है अत: जिनेन्द्र भगवान ही मरण का भय निवारण करते हैं-ऐसा जानना ।।४।। (५) जिनराज के गुण रूपी रत्नों की महानिधि पा करके भी मिथ्यात्व क्यों नहीं जाता-यह आश्चर्य की बात है अथवा निधान पाकर भी कृपण पुरुष तो दरिद्र ही रहता है-इसमें क्या आश्चर्य है।।२५।। (६) अरहंत देव और निग्रंथ गुरु-ऐसा नाम मात्र से तो सब ही कहते हैं परन्तु उनका यथार्थ सुखमय स्वरूप भाग्यहीन जीवों को प्राप्त नहीं होता सो अरहंतादि के सच्चे स्वरूप का अवश्य ही निश्चय करना चाहिये ।।३३।। (७) कई जैन कुल में उपजे जीव नाम मात्र तो जैनी कहलाते हैं परन्तु जिनदेव का यथार्थ स्वरूप नहीं जानते और भली प्रकार उपयोग लगाकर देवादि का निर्णय भी नहीं करते सो यह उनके तीव्र पाप का ही उदय है जो निमित्त मिलने पर भी यथार्थ जिनमत को नहीं पाया ।।६०।।। (८) जो वीतराग देव के भक्त हैं अर्थात् जिन पुरुषों के हृदय में शुद्ध ज्ञान सहित जिनराज बसते हैं उन्हें सरागियों द्वारा कहे गये मिथ्या धर्म तुच्छ भासते हैं ।।६७।। (९) कई जीव कुदेवों का सेवन आदि मिथ्या आचरण को तो छोड़ते नहीं और कहते हैं कि यह तो व्यवहार है, श्रद्धा तो हमारे जिनमत की ही है उनको यहाँ कहा है कि 'जब तक तुम्हारे रागी-द्वेषी मिथ्या देवों की सेवा है तब तक सम्यक्त्व का एक अंश भी नहीं है अतः मिथ्या देवों का प्रसंग तो दूर ही से छोड़ देना और तभी सम्यक्त्व की कोई बात करना' |७१।। (१०) कुल का मुखिया यदि मिथ्यादेवादि की रुचि करता है तो उसके वंश के सभी लोग वैसा आचरण करके कहते हैं कि 'हमारे बड़े ऐसा ही करते आये हैं और इस प्रकार सब ही मिथ्यात्व पुष्ट होने से संसार में ही भ्रमण करते हैं | ७७ ।। (११) अरहंत देव का स्वरूप जैसा कहा गया है वैसा युक्ति और शास्त्र से अविरोध रूप परीक्षावानों को तो प्रकट दिखाई देता है परन्तु जिन जीवों के
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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