SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (सुदेव-अन्यदेव GN (१) चार घातिया कर्मों का नाश करके अनन्त ज्ञानादि को प्राप्त करने वाले अरहंत देव के निमित्त से मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है अतः निकट भव्य जीवों को उनके स्वरूप का विचार होता है और कर लिया है अपना कार्य जिन्होंने ऐसे उत्तम कृतार्थ पुरुषों के हृदय में वे निरन्तर बसते हैं।।गाथा १।। (२) अपनी शक्ति की हीनता के कारण यदि तू व्रत, तप, अध्ययन एवं दान आदि नहीं कर पाता है तो भले ही मत कर परन्तु एक सर्वज्ञ वीतराग देव की श्रद्धा तो दृढ़ रख क्योंकि जिस कार्य को करने में केवल अकेले एक अरहंत देव समर्थ हैं उसे करने में ये तपश्चरण आदि कोई भी समर्थ नहीं हैं ।।२।। (३) हे मूढ़ ! सुख के लिए अन्य सरागी देवों को नमस्कार करता हुआ तू ठगाया गया है क्योंकि जिनदेव का कहा हुआ धर्म ही सकल सुख का कारण है।।३।। (४) इस जीव को सब भयों में मरण का भय बड़ा है उसको दूर करने के 22
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy