SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ श्री नवकार महामंत्र - कल्प और दो नौ आठ और एक नौ, इस तरह गुणाकारकी चढती कला में भी निज - रुपको नही छोड़ता है और एकसे लगा कर आठ तकके जितने पाहुडे है, अथवा ग्यारा इक्कीसा, इकतिसा आदि तमाम पाहुडे अपने रुपसे हट जाते हैं और चढती पडती कलाका अनुभव करते हुवे कभी कम कभी ज्यादे होते रहते हैं, लेकिन ग्यारा, इक्कीसा, इकतिसाके किसी भी पाहुड़े के साथ नवाङ्क शामील हो जाता है तो कितनीही चढती कला पाकर भी अपने स्वरुपको नही छोडता और शेषमें अक्षय रुप तैर आता है जिसका उदाहरण देखिये | १२ +९+१०८ + ९ १३ +९ + ११७ +९ १४ +९+१२६ +९ १५ +९+१३५ +९ १६ +९+ १४४ +९ १७+९+१५३ +९ १८+९ + १६२ +९ १९ +९+ १७१ +९ २० +९+१८० +९ उपर बताए मुवाफिक बारह नवां आदिसे बीसके पाहुडे तक गिनते जाइए और १०८ - ११७ की अनुक्रमसे गिनती करिए तो शेष नौ अङ्क आवेगा इसी तरह किसी भी अंक के कितनेही पाहुडे नौका
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy