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________________ २१ नवाक प्रकरण सकते और शेष गिनती के साथ अपने स्वरपको छोडे हुवे घटित अवस्थामें नजर आते हैं। इसी लिए यह अह आदरणीय नही माने गए और नवाङ्क अन्य अङ्कीके साथ रमण करता हुवा भी निज स्वरप को नही छोड़ता इस लिए आदर पाता है, ससारी आत्माओं को निजका स्वरूप समझने के लिए इस उदाहरणको अपनी आत्मा पर घटित करना चाहिए इस विषय में एक उदाहरण देखियेगा । नरका पाहुडा गिनते जाइए और आगे जोड लगाइए तो नवाङ्क ही शेष आवेगा, साथही स्मरण रहे कि शून्य को इसमें नही गिनते है । ९ +९ १८ +९ २७ +९ ३६ +९ ४५ +९ ५४ +९ ६३ + ० २ +९ ८१ +९ ९० +९ समझमें आ गया होगा कि, एक और आठ नौ, दो और सात नौ, तीन और जे नौ, चार और पांच नौ, पाच और चार नौ, छे और तीन नौ, साव
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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