SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प जाता है अतः मंत्र स्तोत्रके पाठकों को स्वरुप बिगाड कर नही वोलना, इस तरह विगाड कर बोलनेकी आदत हो तो त्याग कर देखें। ___ उपरोक्त कथनानुसार आठों दोष त्याग करने के योग्य है, और सूत्र, मंत्र, स्तोत्रका उच्चार करते समय समझते हुवे मर्यादा सहित पद्धतिसर वोलना चाहिए इन आठों दोषों के लिए अलग अलग दृष्टान्त भी हैं लेकिन इस विषयको बढाना असंगत है, श्रमण सूत्रम बयान आता है कि, हीणक्खरं अञ्चक्खरं पयहीणं। विनयहीणं घोसहीणं जोगहीणं ॥ भावार्थ---अक्षर हीन हो, गाथा बोलते समय कम या ज्यादा बोली जाय पदच्छेद रहित उच्चार करते हों मिलान किए विना विना सम्बन्धके बोलते हों, योगवहन किए विना याने अनाधिकारी होते हुवे उच्चार किया जाय तो अनुचित है। इस लिए मंत्र यंत्र तंत्र करनेसे पहले अधिकारी बनना चाहिए, जिन्होंने अधिकार प्राप्त नही किया है और ऐसे कार्योंमें प्रवेश करते हैं उन पुरुषोंको सिद्धि प्राप्त
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy