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________________ अशुद्धोचार प्रकरण १५ (७) सातवा उदाचादि दोप, जिसके तीन भेद होते हैं एकतो उदात्त, दूसरा अनुदाच, और तीसरा स्वरित, इनमें से उदासका यह मतलब है कि खूब उचे स्वरसे चिल्लाते हुवे गला निकाल कर बोलना जिससे अक्षर गुरु है या लघु इसका भान नही रहता और अपनी धुन्नमें बोलता ही जाय । दूसरे अनुदात उसको कहते हैं कि बहुत मद स्वरसे इतना धीरे बोले कि जिससे न तो आप समझे और न सुनने वाला समझ सके । यह दोष भी त्याग करने योग्य | तीसरा स्वरित दोष का यह मतलब है कि समरीतसे बोलता जाय बहुत उचे स्वरसे भी नही और -मद स्वरसे भी नही सामान्य रीतसे इस तरहसे वोले कि जिससे गुरु, लघु संयुक्ताक्षरका भान ही नही रह सके, ऐसी आदत हो तो यह भी त्याग करने योग्य है । (c) आठवें योग हीन दोष, अक्षर- स्वर व्यञ्जन स्व दीर्घका मिलान किए बिना बोलता जाय और मिलान हो उसे तोड कर वोलता जाय, पदच्छेद, सन्धि आदिका खयाल नही रखे तो भावार्थ विगड
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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