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________________ ९८ श्री नवकार महामंत्र कल्प हो इस प्रकार चिन्तवन करना | और वादमें अनुक्रमसे केशके अग्रभाग जैसा सूक्ष्म चिन्तवन करना और क्षणवार जगतको अव्यक्त ज्योतिवाला चिन्तवन करना, इस तरह करके लक्षसे मनको हटाया जाय तो अलक्षमें स्थिर करते हुवे अनुक्रमसे अक्षय इन्द्रियोंसे अगोचर ऐसी ज्योति प्रगट होती है । इस प्रकार लक्षके आलम्बनसे अलक्ष्य भाव प्रकाशित किया हो तो उससे निश्चल मनवाले योगी महात्मा व ध्यानी पुरुषका इच्छित सिद्ध होता है । योगशास्त्रमें वयान आता है कि, ध्यान करते समय आठ पांखडीके कमलका चिन्तवन करे और उसके मूलमें सप्ताक्षरी मंत्र " नमो अरिहन्ताणं " का ध्यान करे वादमें सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधूपदको अनुक्रमसे चारों दिशाके कमलपत्ते - पांखडीमें स्थापित करे और चारों विदिशा चूलिका में चारोंपद ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तपकी स्थापना कर ध्यानकी लय लगावे तो महान् लाभ प्राप्त होता है । इस तरइसे आराधना करनेवाले परम पुरुष महान् लक्ष्मी प्राप्त करके तीन लोकके पूजनीय हो जाते हैं ।
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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