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________________ पदस्थ ध्येय स्वरुप चन्द्रमाके साथ स्पर्धा करता हुवा ज्योतिषमण्डलमें स्फुरायमान, आकाश मण्डलमें सञ्चार करता हुवा, मोक्षलक्ष्मी के साथ सम्मिलित सर्व अवयवादिसे पूर्ण मन्त्राधिराजको कुम्भकसे चिन्तवन करना चाहिए, जिसका विशेष स्पष्टीकरण करते कहा है कि ॥ अ ॥ जिसके आधमें है और ॥ ६ ॥ जिसके अन्तमें है, और विन्दु सहित रेफ जिसके मध्यमें है, जिसके मिलानसे ॥ अई ॥ नता है, यही परम तत्व है और इसको जो जानते है वही तज्ञ है | ९७ ध्यानी पुरुष या योगी महात्मा स्थिर चित्तसे लय लगाते हुवे इस महावत्त्वका ध्यान करते है तो फल स्वरूप आनन्द और सम्पत्तिकी भूमिरुप मोक्षलक्ष्मी उनके पास आकर खडी हो जाती है । जो मनुष्य केवल रेफ बिन्दु और क्लारहित शुभ्राक्षर || ह || का ध्यान करते है, उन महापुरुपको यही अक्षर अनक्षरताको माप्त हो जाता है जो वोलनेमें नही आता इस तरहसे ध्यान लगावे, और चन्द्रमा कला जैसे सूक्ष्म आकारवाले सूर्य जैसे प्रकाशमान अनाहत नामके देवको स्कुरायमान होता
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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