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________________ ९४ श्री नवकार महामंत्र कल्प और कणिका सहित कमलमें पचीस वर्ण अनुक्रमसे अर्थात् क. ख. ग. घ. 3, च. छ. ज. झ. ब, . ठ, ड. ढ, ण, त. य. द. ध. न, प. फ. व. भ. म, तक चिन्तवन करना । इतना करनेके बाद मुखकमलमें आठपत्रवाले कमलका चितवन कर उसके अन्दर बाकीके आठ वर्ण य. र. ल. च. श. प. स. ह, का चिन्तवन करना । इस प्रकार चिन्तवन करनेसे श्रुत पारगामी हो जाते हैं । इस क्रियाका विस्तरित विधिविधान समझने योग्य है। जो मनुष्य इसका ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, और अनादि सिद्धि वर्णात्मक ध्यान यथाविधि करते रहते हैं उन पुरुपोंको अल्प समयमें ही गया, आया, हवा, होनेवाला, जीवन, मरण, शुभ, जशुभ, आदि वृत्तान्त मालूम हो जानेका ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ____ नाभिकन्दके नीचे आठ वर्गके, अ, क, च, ट, त, प, य, श, अक्षरवाले आठ पत्तों सहित स्वरकी पंक्ति युक्त केसरा सहित मनोहर आठ पांखडीवाला कमल चिन्तवन करे। सर्व पत्रोंके अग्रभागको प्रणवाक्षर व मायावीज ॥ ॐ ही ॥ से पवित्र वनाना ।
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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