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________________ अष्ट पाहुए . sarata स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द HDo Spar FDOG) looct HDod DoG/ Doollo ADOOT Doo अर्थ भाव से नग्न होता है, बाह्य नग्नलिंग से क्या कार्य होता है अर्थात नहीं होता क्योंकि भाव सहित द्रव्यलिंग से कर्मप्रक ति के समूह का नाश होता है। भावार्थ कर्मप्रक ति का नाश करके निर्जरा तथा मोक्ष प्राप्त करना आत्मा का कार्य है सो यह कार्य द्रव्यलिंग ही से तो नहीं होता। भाव सहित द्रव्यलिंग के होने पर कर्म की निर्जरा नामक कार्य होता है, केवल द्रव्यलिंग से तो नहीं इसलिए भाव सहित द्रव्यलिंग धारण करना यह उपदेश है।।५४।। उत्थानिका 添添添先崇先禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 आगे इसी अर्थ को द ढ़ करते हैं :णग्गत्तणं अकज्जं भावणरहियं जिणेहिं पण्णत्तं। इय णाऊण य णिच्चं भाविज्जहि अप्पयं धीर !।। ५५ ।। नग्नत्व भावविहीन के जिन, कार्यकारी ना कहा। यह जानकर हे धीर! तुम, आत्मा को भाओ नित्य ही।।५५ ।। अर्थ भावरहित नग्नपना है सो अकार्य है, कुछ कार्यकारी नहीं है-यह जिन भगवान ने कहा है, ऐसा जानकर हे धीर ! हे धैर्यवान मुनि ! तू निरन्तर नित्य आत्मा ही की भावना भा। भावार्थ आत्मा की भावना के बिना केवल नग्नपना कुछ कार्य करने वाला नहीं है इसलिए चिदानंदस्वरूप आत्मा ही की भावना निरन्तर करनी, इस सहित ही नग्नपना सफल होता है।।५५।। | टि0-1. श्रु0 टी0' में भी इसकी अच्छी विवेचना की है कि केवल बाह्य लिंग रूप नग्न मुद्रा । गरण करने से कुछ भी मोक्ष लक्षण कार्य सिद्ध नहीं होता, वह तो भाव और द्रव्य-दोनों लिंगों के धारण करने से ही होता है।' 崇明崇崇明崇勇聽聽聽聽聽兼業助兼崇明 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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