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________________ ९४ गाथा-७९ कहते? मरता होवे उसे मारना? हम तो मर गये हैं, हमको मारते हो? एक व्यक्ति कहता था। उसके सात लड़कियाँ, सात लड़कियाँ ! और एक-एक का विवाह कर दिया। लड़की समझते हो? लड़की। और उसमें दो-दो, पाँच हजार का खर्च। गरीब व्यक्ति हजार -हजार, दो हजार खर्च करना पड़ते हैं। भाई ! हम तो मर गये हैं और तुम हमको मारो मत। ए... मलूकचन्दभाई! तुम्हारे जैसे को क्या हो? यह तो गरीब व्यक्ति की बात है। उसने लड़की का विवाह किया, उसमें एक लाख रुपये खर्च किये, एक लाख! समझे? मारवाड़ा में बहुत खर्च करते हैं, हाँ! तुम्हारे जैसे गृहस्थ हों तो मारवाड़ में लाख-लाख (खर्च करते हैं)। उसको लाख, उसको लाख। कन्यावाले को लाख... । बच्छराजजी बहुत कहते थे। तुम्हारे बच्छराजजी ऐसा कहते हैं, तुम्हारे एक लाख कोई अधिक नहीं हैं, हाँ! कहो, समझ में आता है ? | यहाँ तो कहना है वहाँ इतना खर्च करके अपनी आबादी बनाते हैं कि हम आबाद हैं। यह तो रोग है, अपराध है। समझ में आया? ऐसे अपराधी पर तो दया खाना चाहिए – ऐसा कहते हैं। आहा...हा...! ऐसा नहीं देखना की, आहा...हा... ! यह तो चढ़ गया और बड़ा हो गया। क्या बड़ा हो गया? बड़ा रोग हुआ है। मान का रोग लगा है। मान का रोग लगा है और इतना नहीं करेंगे तो हमारी नाक नहीं रहेगी। इत्र होता है न? क्या कहलाता है? इत्रदानी घर में बहुत लाते हैं। जब बारात निकलती है न? चाँदी की इत्रदानी (रखते हैं)। नहीं तो कहें यह क्या तुम्हारी बारात? तुमने हमारा क्या आदर किया? ऐसे धूलधानी मान में बेचारा मर जाता है, समझे न? साधारण मारवाड़ी बेचारा कहता था, हमारे एक लड़की का विवाह करना हो तो बीस-बीस हजार का खर्च, घर में पचास-साठ हजार की पूँजी हो... करना क्या? वरना ले नहीं, वे मर गये मान में, सब रोगी हैं । निहालभाई ! उसमें सम्पन्न घर हो, घर में समझने जैसा हो, और वह दस-दस हजार मरणभोज में खर्च करने पड़ते हैं, साधारण घर को, हाँ! अपने ऊँचे घर की बात नहीं है, बेचारे को साधारणवाले को क्या होता है? वे सब मानी, उनके प्रति क्रोध (कषाय) नहीं करना, दया खाना। समझ में आता है? आहा...हा...! क्षणभंगुर गृहलक्ष्मी, विद्या, तप आदि का मान कदापि नहीं करना चाहिए। पहले क्रोध की व्याख्या थी, अब मान की है। समझ में आया? गृहस्थाश्रम, लक्ष्मी, विद्या,
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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