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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) देखो, यहाँ शक्ति धारण करता है। ऐसा कहा न? औदयिकशक्ति धारण करने की शक्ति है, पर्याय में ऐसा होने की उसमें एक योग्यता है, त्रिकाल गुण नहीं परन्तु उस पर्याय की ऐसी शक्ति है, यह विचार करना। ऐसा विचार नहीं करना कि कर्म के कारण मुझे विकार होता है और अमुक के कारण ऐसा होता है। समझ में आया? प्रश्न - प्रमाण ज्ञान करने के लिये कर्म लेना (- ऐसा कहना है)। उत्तर - इसमें ही प्रमाण है। त्रिकाल सामान्य और विशेष पर्याय, इसका ज्ञान, वह प्रमाण है। उस ज्ञान में परवस्तु के प्रकाश का गुण स्व-पर प्रकाश में आ जाता है। कहो, समझ में आया इसमें? यहाँ तो अपने अस्तित्व के अन्दर हो, उसकी बात है; दूसरे के अस्तित्व का भाग उसके घर रहा। आहा...हा...! समझ में आया? कहते हैं, और पारिणामिकभाव... यह त्रिकाल भाव। वे चार पर्याय हैं। - उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक वह निर्मल पर्याय है, उदय वह विकारी (पर्याय) है (और) पारिणामिक वह त्रिकाली भावस्वरूप है। ऐसे पाँच भावस्वरूप से विचार करना। एक को पाँच (भेदस्वरूप से) विचार करना, वह भी व्यवहार है। ओहो...! कहो, समझ में आया? एक समय में कितने भाव होते हैं ? प्रश्न हुआ था न? किसी के साथ प्रश्न हुआ था। पाँच (भाव) उससे कहते हैं कि तुमने निश्चित आत्मधर्म पढ़ा लगता है (तो वह कहता है) हाँ, भाई! आत्मधर्म पढ़ते हैं। हरिभाई ने वे नहीं डाले थे? बोल नहीं आये थे? एक बार डाले थे न? किसी ने कहा होगा कि पाँच भाव... । तुम्हारे में न हो। वह आत्मधर्म में से लिया होगा। यह तो होता है परन्तु उन्होंने वैसा छाँटकर रखी हुई बात उसमें होती ही नहीं। उनने पढ़ा उसकी बात है न? उनने पढ़ा उसमें से पाँच बोल कहे। ऐसा कहनेवाले ने आत्मधर्म पढ़ा, उसमें से पाँच बोल कहे न? तुम क्या समझे? पाँच भाव एक समय में कहे तब उसमें प्रश्न किया कि तुम कहाँ से बोले? आत्मधर्म बिना होता नहीं। तब कहा हाँ, मैंने आत्मधर्म में पढ़ा है। तुम समझे नहीं अभी? उन्होंने पूछा। उसने ऐसा जवाब दिया हाँ, आत्मधर्म पढ़ते हैं। एक समय में पाँच भाव होते हैं । उपशमश्रेणी माँड़े क्षायिक समकित हो, उपशमभाव
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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