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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ४७ होनेवाली दशायें, उसकी दृष्टि के विषय में वे नहीं आती है - ऐसी दृष्टि प्रगट करने का नाम सम्यग्दर्शन है। आहा...हा...! कैसा सुख होगा इन पैसों में ? है ? तो किसलिए तुम्हारे (बेटे) वहाँ जाते? वहाँ हैरान होता है। कहो, (वहाँ जाकर) हैरान होता है। लड़के को अमेरिका में दस हजार का वेतन मिलता है न! हैरान होने गया है. वहाँ हैरान होने। वह स्वयं कहता है, हाँ, वह स्वयं । उसमें धूल में सुख नहीं है। वह बेचारा आवे तब कहता है, उसमें कुछ नहीं। करने का तो यह है ऐसा कहता है। महीने का दस हजार वेतन हो या बीस हजार हो, (उसमें) आत्मा को क्या? हैरान, आकुलता है। आकुलता... आकुलता... आकुलता... यह आया न, आ गया। विकल्प हाँ! विकल्प, विकल्प की होली है, वह चीज तो यहाँ स्पर्श भी नहीं करती। यहाँ स्पर्श करती है? पड़ जाती है यहाँ? आत्मा तो अरूपी भगवान है, उसे रूपी स्पर्श करता है? वे तो रूपी परमाणु जड़, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शवाले हैं। विकल्प उठावे, विकल्प! यह मुझे मिला मैंने हटाया - ऐसे विकल्प की वासना उठावे वह दु:खदायक विकल्प है। जिसे सुख और शान्ति अर्थात् स्वतन्त्रता चाहिए, उसे इस कल्पना से पार चैतन्य भगवान पूर्णानन्द है, उसकी दृष्टि करना चाहिए। उस दृष्टि में स्वतन्त्रता प्रगट होकर शान्ति प्रगट होती है, इसके अतिरिक्त कोई सुख का रास्ता नहीं है। समझ में आया? तीन काल में एक स्वरूप में शुद्ध स्फटिक मणि के समान दिखनेवाला यह आत्मा है। जैसे, स्फटिक मणि, शुद्ध स्फटिक मणि, शुद्ध-श्वेत है; उसे वर्तमान में काले, लाल, फूल के निमित्त से अन्दर जो काला, लाल, रंग दिखता है। वह कहीं स्फटिक का मूल स्वरूप नहीं है। ऐसे स्फटिक की मूल चीज से देखो तो काले, लाल फूल में जो काला लाल दाग दिखता है, वह उसका स्वरूप नहीं है। ऐसे ही यह भगवान तो चैतन्यस्वरूप स्फटिक है । वह पत्थर तो जड़ स्फटिक है । चैतन्य स्फटिक, ज्ञानानन्द स्फटिक मूर्ति प्रभु निर्मलानन्द है; इस दृष्टि से देखो तो उसमें पुण्य-पाप के विकार का दाग भी उसके स्वरूप में नहीं है। आत्मा की ऐसी दृष्टि करने का नाम धर्मदृष्टि है और यह धर्मदृष्टि के बिना तीन काल में किसी को धर्म नहीं होता। समझ में आया? बहुत कठिन पड़ता है ऐसा कितने ही कहते हैं । है?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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