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________________ ३९० गाथा-१०५ हैं, इसलिए ऐसा नहीं समझना चाहिए कि दूसरे लोग कहते हैं, वे ब्रह्मा-विष्णु। कोई विवेकी कहते हैं कि प्रकृति और पुरुष में एकत्व का अभ्यास होने से क्लेश एवं जन्म परम्परा हुई है तो प्रकृति और पुरुष का भेदज्ञान कर लेने से क्लेश मिट जाय। कुछ विवेकी महानुभाव के धारणा एक क्षणिक चित्तवृत्ति है।' उसका भी आत्मा ध्यान करता है। कुछ विवेकी महानुभाव की धारणा है कि आत्मा तो शाश्वत् निर्विकार है। विकार का जब तक भ्रम है, तब तक जीव दु:खी है। ....विकार का भ्रम समाप्त शांत... । कुछ विवेकी महानुभावों की धारणा है कि दुष्कर्मों से जीव संसारीक यातनाएँ सहते हैं । यातनाओं का मुक्ति पाना सत् कर्म(है)। और कुछ विवेकी महानुभावों की धारणा है कि विकल्पात्मक वेद उपायों को ही जीव का संसार परिभ्रमण कर रहा है। इस भवभ्रमण की निवृत्ति निर्विकल्प समाधि से होती है। इत्यादि प्रज्ञापूर्वक अनेक धारणा हैं। इनमें से किसी भी धारणा को असत्य नहीं कहा जा सकता और यह भी नहीं कहा जा सकता कि इनमें कोई भी धारणा किसी दूसरे से विरुद्ध है । इन सब धारणाओं का जो लक्ष्य है, वह सब एक ही है -' यह समयसार। बिल्कुल खोटी बात है। यह अन्तिम भूमिका में लिखा है। यह दिल्ली से छपा है न? भाई! यह आत्मा जो कहलाता है, वह आत्मा तो कहीं वेदान्त कहो या दूसरा कहो, या लाख बात करे... यह आत्मा है, असंख्यप्रदेश जिसका क्षेत्र, वस्तु एक असंख्य प्रदेश क्षेत्र, अनन्त अनन्तानन्त क्षेत्र के प्रदेशों का माप नहीं, कहीं हद नहीं, इससे अनन्त... अनन्त गुण और इतनी ही उनकी पर्यायें। कहाँ ऐसा आता है ? लाओ! समझ में आया? अज्ञानियों ने तो असर्वांश को सर्वांश माना है। यह तो सर्वांश पूरी चीज ऐसी अखण्ड है। नेमचन्दभाई! इसलिए यहाँ कहते हैं कि यह जो ब्रह्मा आदि शब्द पड़े हैं, यह वे नहीं। ऐसा जो आत्मा है, वह जो पंच परमेष्ठीरूप परिणमता है, उसे ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा जाता है। आहा...हा...! कितने ही इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि उनने तो ऐसा कहा है। भक्तामर स्तोत्र में कहा है। क्या आता है ? विबुध बुध – ऐसा आता है। तुम बुद्ध कहते हो परन्तु यह बुद्ध अर्थात् इस स्वरूप है, उसे बुद्ध कहते हैं । अन्य बुद्ध को यहाँ बुद्ध कहते हैं - ऐसा नहीं है। समझ में आया?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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