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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३२७ तो आर्तध्यान है। आर्तध्यान में सहन कहाँ किया था? वह तो दुःख है, दुःखी हुआ आत्मा सुख की पूर्ण दशा को साधेगा? सुखी हुआ आत्मा पूर्ण सुख को साधेगा। समझ में आया? आहा...हा...! कठिनता से पूरी करे.... कष्ट क्रिया कर-करके यह महाव्रत पालना, यह दया पालना, पूरा किया, पूरा करने दो न अब, यह तो खेद है, यह तो दुःख है। यह तो कष्ट है, अरुचिकर है, आर्तध्यान है, पाप करना है। इस परिणाम से, इस दुःख के परिणाम से, पूर्ण सुख का स्वरूप - मोक्ष मिलेगा? इसलिए कहते हैं कि सुखी आत्मा ही पूर्ण सुखी होता है। आहा...हा...! कहो, इसमें समझ में आया? भगवान सुखी आत्मा की बात (कही), वह पर्याय की बात है, हाँ! सुखी तो त्रिकाल है आत्मा। उसकी दर्शन-ज्ञान और अवलोकन की स्थिरता होने पर जो सुखदशा हुई, वह सुखी, पूर्ण सुख को प्राप्त करेगा। दुःखी पूर्ण सुख को प्राप्त करेगा? आर्तध्यान में आया हुआ, राग में आया हुआ, अरुचि में आया हुआ, वह मोक्ष की ओर जाएगा? समझ में आया? आहा...हा...! छहढाला में आता है न? भाई! नहीं? वैराग्य में दुःख लगता है, नहीं आता, कष्टदान... क्या? 'आतमहित हेतु वैराग्य ज्ञान... कष्टदान' भाई ! चारित्र तो कष्टदायक है, यह बालू के ग्रास जैसा है। बालू... यह चारित्र ऐसा होगा? भाई! तुझे पता नहीं है, भाई! चारित्र तो आनन्ददाता है, उसे तू दुःखदाता माने तो तुझे चारित्र के गुण की, श्रद्धा की खबर नहीं है, समझ में आया? छहढाला में बहत बात ली है। ___जो आत्मा का ज्ञान और वैराग्य अर्थात् राग से हट जाना, वह सुखदाता है, उसे कष्टदाता मानता है, भाई! बापू! यह करके तो देखो! पंच महाव्रत पालकर तो देखो! नग्न तो रहकर देखो! प्रतिमा धारण करके कष्ट तो सहन करके देखो! यह क्या कहते हैं ? अरे ! भगवान ! तू क्या कहता है ? भाई ! यह कष्ट सहन का भाव तो आर्तध्यान हुआ, भाई ! उसमें तो दुःखरूप दशा है, वह दुःखरूप दशा, मोक्ष जो पूर्ण सुख, उसे साधेगी? सुखी हुआ आत्मा सुख को साधता है। आहा...हा...! कहो, दोशी ! समझ में आता है या नहीं इसमें? वहाँ मुम्बई में ऐसी सूक्ष्म बात नहीं आती, हाँ! वहाँ तो सब अमुक प्रकार की आती है। वहाँ तो दस-दस, बारह, पन्द्रह हजार लोग आते हैं, वह तो
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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