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________________ गाथा - ९७ ३२६ - ले, तब वानगी कुछ होती है न ? तो उसकी जाति की वानगी होती है या नहीं ? वानगी को क्या कहते हैं ? नमूना । रुई का बड़ा ढेर हो तो थोड़ा पाव सेर निकाल कर ऐसा देखते हैं। इसी प्रकार आत्मा आनन्द का महापिण्ड है । उसे पुण्य-पाप के विकल्पों की रुचि छोड़कर और आश्रय छोड़कर स्वरूप में जा (तो) उस आनन्द के पिण्ड में से तुझे आनन्द के नमूने का वेदन होगा और वह आनन्द का नमूना पूर्ण मोक्षसुख का कारण है (ऐसा) तुझे ख्याल में आयेगा । मोक्ष में पूर्ण आनन्द है, उसका यह थोड़ा सा नमूना है। समझ में आया ? - यह तो योगसार है। एकदम सार वस्तु रखी है। मोक्ष का सुख आत्मा का पूर्ण स्वाभाविक सुख है, जो सिद्धों को सदा काल निरन्तर अनुभव में आता है। ऐसे सुख का उपाय भी आत्मिक आनन्द का अनुभव करना है। सुखी आत्मा ही पूर्ण सुखी होता है। यह थोड़ा न्याय डाला है। क्या कहा ? उस ओर है। सुखी आत्मा पूर्ण सुख का कारण होता है। दु:ख अन्दर वेदे और पूर्ण मोक्ष का कारण होगा ? भगवान आत्मा अतीन्द्रिय आनन्दस्वरूप के आनन्द का अनुभव लेने पर वह सुखी आत्मा सुख का उपाय पूर्ण सुख का कारण होता है । क्या कहा ? समझ में आया ? यह पाठ फिर ऐसा आया न ? 'जं विंदहिं साणंदु क वि, सो सिव- सुक्ख भांति' इसलिए जरा स्पष्टीकरण किया। सुखी आत्मा ही पूर्ण सुखी होता है । दुःखी आत्मा पूर्ण सुखी होगा ? सुखी भगवान आत्मा, स्वयं का दर्शन किया, दर्शन किया, अवलोकन किया और स्थिर हुआ । यह तीन हुए - श्रद्धा, ज्ञान, और चारित्र । अपना स्वरूप पूर्ण शुद्ध आनन्द का दर्शन किया अर्थात् रुचि हुई; अवलोकन किया ज्ञान किया; स्थिर हुआ, तब उसे आनन्द की प्रगट दशा की वानगी मिली। उस वानगी की दशा सुखी होती हुई पूर्ण सुखी होगी । उस पूर्ण सुख के मोक्ष को वही साध सकेगी – ऐसा कहते हैं । अन्दर कष्टदायक (नहीं है) । अरे... अपवास किया और कष्ट हुआ न... अरे... ! यह तो आर्तध्यान है । यह धर्मध्यान है ? ऐसा कहते हैं । यह अपवास किया, (तब) भाई को बहुत परीषह आया था, हाँ ! और बहुत परीषह सहन हुआ (इसलिए) निर्जरा बहुत (हुई) । किसकी निर्जरा, धूल की... उसे अरुचि तो लगी है, वह
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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