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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३१७ मुमुक्षु - गिनती में पकड़ में नहीं आते। उत्तर – परन्तु अनन्त काल हुआ, बापू ! यह तो आदि रहित काल है, असंख्यात अनन्त... अनन्त... अनन्त... अनन्त (काल) कहाँ रहा, कहाँ रहा, कहाँ रहा? तू है न? है या नहीं? है उसकी अस्ति कहाँ रही? रही कहाँ ? देखो न ! ऐसा आदि रहित काल में भटकते भव में कहाँ भटका? कहाँ कितना (काल रहा) इसका पता है। ऐसे अनन्त काल के समक्ष यह तैंतीस सागर तो कहीं अनन्तवें भाग है। इस तैंतीस सागर में एक सागरोपम में दस कोडाकोड़ी पल्योपम (होते हैं) और एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग में असंख्यात अरब वर्ष... इतनी स्वाध्याय करते हैं – ऐसा यहाँ कहना है परन्तु वह गुणस्थान बदलता नहीं। यदि अधिक निर्जरा होती हो तो गुणस्थान बदलना चाहिए। इसमें समझना आया? बहुत निर्जरा होवे तो (बदलना चाहिए)। चौथे का चौथा रहता है। अन्तर की एकग्रता के बिना निर्जरा नहीं हो सकती। पुण्य-बन्धन बहुत करता है। मुमुक्षु - शास्त्र का अर्थ करने में। उत्तर – वहाँ शास्त्र का अर्थ करने में... क्या धूल? यह सब समझे बिना के अर्थ करते हैं। सच्ची दृष्टि मिली नहीं और उस दृष्टि के बिना शास्त्र का अर्थ करते हैं। 'जन्मान्ध का दोष नहीं आन्तरो, जाति अन्ध को दोष नहीं आन्तरो, जो नहीं जाने अर्थ...' अन्धा अर्थ क्या जाने? 'मिथ्यादृष्टि रे तेथी आतरो, करे अर्थ न रे अनर्थ ।' आहा...हा...! वस्तु का जो निश्चय स्वरूप है, व्यवहार स्वरूप है, जैसा उसका अर्थ होना चाहिए, उस प्रकार न करे वह तो कहते हैं 'जाति अन्ध करता मिथ्यादृष्टि आतरो छे, करे अर्थ न रे अनर्थ।' अरे... ! वीतराग की पैढ़ी पर बैठकर, वीतराग मार्ग की पैढ़ी पर बैठकर वीतराग के नाम से उल्टे अर्थ करके चलावे बापू! बहुत जवाबदारी है, भाई! बहुत जवाबदारी है, बापू! यह तुझे अभी नहीं लगती। आहा...हा...! वीतराग का मार्ग स्व आश्रय से शुरु होता है। पराश्रय से लाभ मनावे, भाई! वह वीतरागमार्ग नहीं है। तीन काल-तीन लोक में नहीं है। समझ में आया? यहाँ कहते हैं, जिसने आत्मा को जाना, वह परभाव को भी जानता है, परन्तु जानकर न छोड़े तो यह शास्त्र क्या जाना उसने? राग और विकार मेरे स्वभाव से भिन्न हैं
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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