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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३०५ ग्यारह अंग और नौ पूर्व पढ़ा हो तो वह कुछ पढ़ा नहीं, परन्तु जिसने भगवान आत्मा अनन्त-अनन्त गुण सहज सम्पत्ति, अनन्त गुण का साम्राज्य जिसके घर में है... आहा...हा...! उस ज्ञान की एक पर्याय में तीन काल-तीन लोक ज्ञात हो ऐसा साम्राज्य एक पर्याय का है, ऐसी-ऐसी अनन्त पर्यायों का एक गुण, ऐसे अनन्त गुणों का एक स्वरूप... आहा...हा...! दुनिया के राजा और चक्रवर्ती वे क्या हैं? वे भी देखते हैं, वे कुछ इसे कर नहीं देते। वह देखने पर ऐसा मानता है कि यह मुझे चक्रवर्ती का राज है। यह मेरी स्त्री है, यह तो मान्यता है। यह कोई वस्तु मिल नहीं जाती परन्तु वह विकार के साथ मानता है कि मेरे हैं। ज्ञानी उन्हें देखता है, उन्हें विकार नहीं कि यह है, इतना अन्तर है। समझ में आया? यह चीज तो है जैसी है; जानता है, यह मैं शुद्ध हूँ, यह है उसे मैं जानता हूँ। वह (अज्ञानी) जानने के उपरान्त वे मेरे हैं – ऐसा मानता है, यह उसके दोष की अधिकता है। समझ में आया? कि जो उसके नहीं... राग भी उसका नहीं, उसे मानता है, वह मिथ्यादृष्टि की अधिकता है परन्तु ऐसा कोई गुण नहीं है कि मिथ्यात्व कायम रहे, गुण नहीं है और यह गुण है, जिसमें भगवान प्रकाश नाम का एक गुण कहते हैं कि जिसका कार्य आत्मा राग और विकल्परहित प्रत्यक्ष वेदन में आवे – ऐसा आत्मा का गुण है। आहा...हा...! सैंतालीस गुण में (ऐसा एक गुण है)। अपने व्याख्यान सब आ गये हैं। अभी नये व्याख्यान तो अभी रिकार्डिंग हो रहे हैं। आत्मप्रसिद्धि तो प्रकाशित हो गयी है न पहले की! परन्तु यह नये व्याख्यान बहुत अच्छे हैं, इनमें बहुत अच्छी बात आयी है परन्तु अभी रिकार्डिंग में अन्दर पड़े हैं, बाहर निकले तब... हैं ? सैंतालीस शक्ति, आहा...हा...! सैंतालीस शक्ति न? बाहर आ गयी है। हमारे यह कुँवरजी भाई की ओर से प्रकाशित होनेवाली है। बहुत अच्छे व्याख्यान आये हैं, अभी सैंतालीस शक्ति के व्याख्यान हुए हैं, बहुत अच्छे हुए हैं। पहले से भी अच्छे, बहुत स्पष्टीकरण आया है। पण्डितजी को पहले देना, समझ में आया? भगवान आत्मा.... कहते हैं कि उसमें गुण है। प्रभु परमात्मा ने देखा है। वह क्या गुण है ? कि आत्मा स्वयं को प्रत्यक्ष हो - ऐसा गुण है। राग द्वारा ज्ञात हो – ऐसा वह रहे
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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