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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) २५१ तीसरा पैराग्राफ.... आत्मा में स्थिरता होने का काम... इस ओर, आत्मा में स्थिरता होने का काम चौथे गुणस्थान से शुरु हो जाता है... पीछे लिखा है - वहाँ स्वरूपाचरणचारित्र है। पण्डितजी ! ऐसा है, प्रभु! सुन तो सही! आत्मा शुद्ध है, जहाँ ऐसी दृष्टि हुई तो उसमें आंशिक स्थिरता भी हुई; अत: मिथ्यात्व गया, अनन्तानुबन्धी गयी। मिथ्यात्व जाने से सम्यक्त्व हुआ; अनन्तानुबन्धी (गयी तो) स्वरूप में अंशरूप स्थिरता (हुई) फिर जो शब्द कहना हो, वो कहें, लो! स्वरूपाचरण नहीं, स्वरूपाचरण नहीं, चिल्लाहट मचाते हैं। अरे... ! भगवान ! सुन तो सही, भाई! है ? उद्दण्ड लड़का शोर मचाता है – ऐसा कहते हैं। उद्दण्ड लड़का होता है न? तूफानी... यह तरबूज होता है न? तरबूज, क्या कहते हैं ? उसका पिता तरबूज लाये न? तरबूज, क्या कहते हैं ? लाल। फिर कोई लम्बी फाँक हो, कोई नीचे चौड़ी हो, नीचे चौड़ी हो तो इतनी छोटी हो, लम्बी हो तो ऐसी हो, उसके पिता को पहले से ही पता होता है कि यह ऊधमी है; (इसलिए कहता है) पहले ही पसन्द कर ले। देख, यह दस (फाँक) पड़ी हैं, यह तीन लड़कियाँ हैं और पाँच लड़के हैं और यह तेरी माँ और यह तेरा बाप । इस प्रकार दस फाँक हैं, देख! फिर तू कहेगा, अरे... बापू! उनको चौड़ी है परन्तु उन्हें चौड़ी नीचे है परन्तु ऊपर लम्बी नहीं है तेरे नीचे छोटी है परन्तु लम्बी है, दोनों समान हैं। ऊधमी तो ऐसे ऊधम किया ही करता है। इसी प्रकार धर्म के नाम पर कम, अधिक, विपरीत करके ऊधम किया ही करते हैं। बापू! यह तो भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर का मार्ग, भाई ! उनकी दुकान के मुनीम भी अलग प्रकार के होते हैं। समझ में आया? तेली जैसों को महीने में दस रुपये का वेतन दे (उसे) अरबोंपति की दुकान में मुनीमरूप से बैठावे तो वह क्या करेगा? घानी सूझेगी, सब पैसा पिल देगा। बापू! सर्वज्ञ परमेश्वर प्रभु आत्मा है, भाई! तीन काल-तीन लोक के जाननेवाले परमात्मा, धर्म का मूल सर्वज्ञ परमेश्वर है, जिन्हें एक समय में अनन्त गुण, अनन्त पर्यायें तीन काल हस्तकमल की तरह देखा – ऐसे परमेश्वर के मार्ग में बहुत जवाबदारी से काम लेना चाहिए। समझ में आया? यहाँ कहते हैं कि भाई! यह स्वरूपाचरणचारित्र चौथे (गुणस्थान से) होता है।
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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