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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) २४५ गुण किसी भी अवस्था के बिना नहीं रहता, तो उसका अर्थ क्या हुआ? चन्दुभाई ! वह आनन्दगुण, गुण का धारक भगवान आत्मा की रुचि होने से, उसकी प्रतीति, भरोसा होने से उस आनन्दगुण की अवस्था आनन्दरूप परिणमित होती है। मुख्यरूप से आनन्द की अवस्था आनन्दरूप परिणमित होती है। गौणरूप से थोडा द:ख है परन्त वह बात गौण है। समझ में आया? है ? राग-द्वेष के परिणाम (होते हैं) वह वहाँ चारित्रदोष है और उससे विरुद्ध (परिणमन) हुआ, आनन्द से विरुद्ध (परिणमन हुआ) वह दुःख-आकुलता है। समझ में आया? 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' इन लड़कों को आती है या नहीं? भई, यह छोटे लड़के हैं या नहीं? गुण किसे कहना? आता है न? भाई ! गुण उसके द्रव्य अर्थात् वस्तु के प्रत्येक भाग में अर्थात् उसकी प्रत्येक क्षेत्र की स्थिति अवगाहना में गुण व्याप्त होता है, रहता है और वह गुण उसकी प्रत्येक हालत में उपस्थित होता है। अवस्था बिना वह गुण नहीं हो सकता। यह तो जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में लड़कों को सिखावे ऐसी बात है। क्या (कहा)? राजमलजी ! समझ में आया? यह आनन्दगुण.... भगवान आत्मा विशेषगुण और सामान्यगुण का समुदाय है - ऐसा आत्मा का अन्तर्मुख होकर विश्वास, रुचि, भरोसा, श्रद्धा का परिणमन हुआ तो आत्मा में जितने गुण हैं, उन समस्त गुणों का अंशरूप व्यक्तपने परिणमन सम्यग्दर्शन के साथ होता है, क्योंकि सम्यग्दर्शन सम्पूर्ण पूरे द्रव्य की प्रतीति करता है। पूर्ण द्रव्य को... तो द्रव्य पूर्ण गुणों का पिण्ड है, समस्त गुणों का पिण्ड है, सम्पूर्ण द्रव्य की प्रतीति करने से सम्पूर्ण द्रव्य के जितने गुण हैं, इतने सम्यक्श्रद्धा में से जहाँ पर्याय प्रगट हुई तो अनन्त गुण की भी आंशिक प्रगट दशा होती है। आहा...हा...! ऐसी सीधी-सादी बात में भी गड़बड़ करते हैं, लो! समझ में आया? यहाँ यह स्वयं कहेंगे, हाँ! ऐसी सादी बात है, भगवान ! सीधी बात है। आत्मा प्रसिद्ध है, प्रगट है। वस्तु है वह प्रगट है या नहीं? या अप्रगट-ढंक गयी है? द्रव्य ढंक गया है ? समझ में आया? प्रगट तत्त्व है, प्रगट तत्त्व है। प्रगट अर्थात् है। है वह सत्तावाला तत्त्व है। सत् वह सत्तावाला, अस्तित्ववाला, सत्रूप, सत्वरूप है तो
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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