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________________ २०४ गाथा-८८ कहते हैं कि मोक्ष का ही पथिक है। गिर जाएगा तो? गिर जाने का प्रश्न कहाँ है ? वस्तु कभी गिरती है ? तो वस्तु की दृष्टि गिरने की कभी बात ही अन्दर में नहीं है। समझ में आया? और गिरने की शंका है, वहाँ द्रव्य की दृष्टि नहीं रहती। वह तो राग में आ गया, राग की एकत्वबुद्धि में आ गया। समझ में आया? मुमुक्षु : दूसरे जीवों की तुलना में दृष्टि का जोर कोई अलग प्रकार होता है। उत्तर : वस्तु ही यह है। सम्यग्दर्शन, सर्व में... यह क्या कहा? पण्डितजी! 'कर्णधार' कहा है न? कर्ण शब्द है। कण्ठस्थ नहीं... मोक्षमार्ग में कर्णधार है। खेवटिया है, नाविक; सबमें नाविक – नाव चलानेवाला है। कर्णधार लिया है। समन्तभद्राचार्यदेव। सबका नाविक है। चैतन्य की पूरी नाव, स्वभावसन्मुख की धारा चलती है, (उसमें) सम्यग्दर्शन है, वह नाविक है, खेवटिया है। खेवटिया समझे ? पार करने के लिए... ओ...हो...! रत्नकरण्डश्रावकाचार में बहुत कथन किया है। उसके जैसा उत्तम कोई पदार्थ नहीं है... सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं, उसके बिना चारित्र नहीं, उसके बिना कुछ है ही नहीं और सम्यग्दर्शन हुआ, वहाँ सर्वस्व हो गया। समझे? वह मोक्षनगर का पथिक बन जाता है, संसार की तरफ पीठ रखता है... लो, इसका अर्थ क्या? कि विकल्प आदि की उपेक्षा ही रखता है, आहा...हा...! निर्विकल्प स्वभाव की अपेक्षा रखता है और विकल्प की उपेक्षा करता है, बस! यह वस्तुस्वरूप है। इसके ख्याल में आना चाहिए न? अन्तरदृष्टि में आना चाहिए न? ऐसे का ऐसे बोले तो कहीं पता नहीं खाता । समझ में आया? भगवान आत्मा चैतन्यपदार्थ, ज्ञायकभाव पूर्ण अमृत की, आनन्द की गाढ़ रुचि, गाढ़ रुचि। समझ में आया? जैसे मक्खी है, वह फिटकरी का स्वाद लेती है, फिटकरी होती है न? फिटकरी का स्वाद ले तो खारा लगता है, मिश्री की इतनी डली हो, इतनी (होवे उसकी) मिठास में ऐसी लग जाती है, ऐसी लग जाती है कि बालक खाते-खाते उसका हाथ लगाये, उसकी पंख मिश्री पर चिपक गयी होती है, (बालक का हाथ लगे) तो भी नहीं हटती... मिठास लग गयी है। फिटकरी की इतनी बड़ी डली हो और मिश्री की छोटी डली हो परन्तु ऐसी (मिठास) लगी है। समझ में
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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