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________________ १९२ गाथा-८७ पूर्ण ज्ञायकस्वरूप की ओर की निर्विकल्प दृष्टि करके अन्दर स्थिर होना, वही मोक्ष का मार्ग है, यही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की एकता है। श्रावक को भी ऐसा अंश है, हाँ! 'पुरुषार्थसिद्धियुपाय' में कहा है, जितना मुनि का मार्ग है, उसका एक अंश श्रावक को भी है। सब ले लेना, समिति, गुप्ति आदि, हाँ! थोड़ा अंश, ऐसा पाठ है। 'अमृतचन्द्राचार्यदेव'! राग-द्वेषरहित वीतरागभाव है... आत्मा के स्वभाव के आश्रय से दृष्टि-ज्ञान लीनता होना ही वीतरागभाव है। वही परम समता है, वही एक अद्वैतभाव है। भाव, हाँ! पर्याय; द्रव्य तो अद्वैत है ही।अद्वैत एकरूप स्वभाव की एकता में अद्वैतभाव – विकल्परहित, भेदभावरहित अभेददशा उत्पन्न होती है, वही अद्वैतभाव है। वही संवर और निर्जरा तत्त्व है, इसलिए ज्ञानी को व्यवहारनय के विचार को तो बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। आहा...हा...! पहले बन्ध-मोक्ष की बात की थी न, वह व्यवहारनय का विचार है। यह बन्ध है, इस राग में आत्मा रुक गया है, राग से रहित होगा - ऐसी मुक्ति की पर्याय के विचार में तो निःसन्देह शुभराग होगा, और शुभराग से तुझे बन्ध भी होगा। कहो, यह बन्ध-मोक्ष का विचार राग है। मुमुक्षु : विचार तो जानना चाहिए। उत्तर : नहीं, विचार का अर्थ यहाँ राग लेना, भेद पड़ा न ! ज्ञान का विचार वहाँ अटक गया, रुक गया... विचार को विकल्प कहते हैं । 'राजमल्लजी' ने ऐसा लिया है। अपने भी लिया है। राजमल्लजी ने यह लिया है, विचार तक बन्ध का कारण है। विचार अर्थात् ? यह तो ज्ञान की पर्याय है। लिया है, राग आता है न? भेद पड़ता है, उसे राग कहा है। राजमल्लजी ने लिया है, अपन ने भी लिया है। अपने समयसार में लिया है, पता है। भाई ने डाला है, विचार तक बन्ध का कारण है। यह भाषा शास्त्र की है, राजमल्लजी की है। विचार का अर्थ विकल्प में रुकता है वह, भेद करता है। ज्ञान नहीं, ज्ञान का तो जानने का स्वभाव है परन्तु वह ज्ञान रुक जाता है, उसे यहाँ विचार के अर्थ में (कहा है)। व्यवहारनय से ही यह देखा जाता है कि आत्मा में कर्मों का बन्ध है, आत्मा के साथ शरीर है, आत्मा में क्रोध-मान-माया-लोभभाव है... हम चौथे, पाँचवें,
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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