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________________ १८४ गाथा-८६ मुमुक्षु : लिखा है न। उत्तर : लिखा (भले हो), उसका अर्थ समझना चाहिए। यह तो कहते हैं... स्पष्टीकरण कराते हैं। पण्डितजी ! यह ऐसा कि लिखा तो ऐसा है, विवाह करना। मुनि को नव कोटि से त्याग है। विषय का नव कोटि से (त्याग है)। मन, वचन, काय, कृत-कारित अनुमोदन से त्याग है। करे नहीं, कराये नहीं और कर्ता का अनुमोदन करे नहीं। मिथ्यात्व का पाप मिटाने को वह बात की है। उसमें आया है ४९२ पृष्ठ पर, यह रहा, छियानवेंवाँ श्लोक है, अधिकार का नाम नहीं, नाम कुछ नहीं... (दशवाँ अधिकार है)। वरं गणपवेसादो विवाहस्स पवेसणं। विवाहे रागउप्पत्ति गणो दोसाणागरो॥९६॥ आचार्य ऐसा कहते हैं, भाई! मिथ्याश्रद्धा का दोष बड़ा है, महापाप ही यह है, चारित्रदोष का पाप अल्प है। लोगों को मिथ्याश्रद्धा के पाप और सम्यग्दर्शन का धर्म इन दोनों की कीमत नहीं है। इसलिए कहते हैं कि भाई ! यति! अन्त समय में यदि गुण में प्रवेश करेंगे तो शिष्यादिकों में मोह उत्पन्न होगा तथा मुनिकुल में मोह उत्पन्न होने के लिए कारणभूत ऐसे पावस्थादिक पाँच मुनियों से सम्पर्क होगा। उनके सम्पर्क की अपेक्षा से विवाह में प्रवेश करना अर्थात् गृह में प्रवेश करना अधिक अच्छा है क्योंकि विवाह में स्त्री आदिक परिग्रहों का ग्रहण होता है और उससे रागोत्पत्ति होती है। परन्तु गण तो... ऐसा होता है, नहीं ऐसा होता है, व्यवहार करते -करते निश्चय होता है - ऐसी विपरीतता करा देंगे कि तुझे महा मिथ्याश्रद्धा (होकर तू) दर्शन भ्रष्ट हो जाएगा। दर्शनभ्रष्ट नहीं सिझंति चारित्त भट्टा सिझंति... क्योंकि ख्याल में है। उसमें तो श्रद्धा में ही पता नहीं है, क्या राग? क्या पर चीज है ? मैं कौन हूँ? तो कहते हैं कि उसमें प्रवेश कर। वह प्रवेश कराने के लिए नहीं कहते परन्तु जिसकी श्रद्धा विपरीत है - ऐसे साधु का गणसमूह, उसके संसर्ग से भाई! तुझे मिथ्याश्रद्धा हो जाएगी, वह तो कुयुक्ति से समझायेगा, तेरी सच्ची श्रद्धा भ्रष्ट हो जाएगी। इसकी अपेक्षा तो स्त्री के संग में तुझे चारित्र का दोष लगेगा, श्रद्धा का दोष नहीं लगेगा। समझ में आया? यह बताते हैं । स्त्री में प्रवेश करो, पाठ तो ऐसा है। विवाहस्स
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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