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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) १७१ भगवान आत्मा, तुझे कहीं ठीक न लगे तो जा अन्दर ! समझ में आया ? तेरे हाँकने से कोई साथ न आवे तो तू अकेला जाना, तुझे किसी का क्या काम है ? कि अरे... ! हम ऐसी बात करते हैं और यह (मानते नहीं) अब तुझे काम क्या है ? हाँकल, वाणी जड़ है, विकल्प है वह बन्ध का कारण है कोई समझे न समझे वह कोई तेरे आश्रित नहीं है। कहो, समझ में आया ? 'अकेला जाना रे' आता है न कहीं ? नहीं ? क्या आता है ? 'मेघाणी', 'नहीं', मूल तो ‘रविन्द्रनाथ टैगोर' का है। वह तो उनकी शैली से बात है, अपनी दूसरी शैली है, हाँ ! 'तेरी पुकार सुनकर कोई न आवे तो अकेला जाना रे...' यह श्लोक अभी आयेगा, यह आयेगा। एक्कलउ यह छियासी (गाथा में भी ) आयेगा । छियासी गाथा का पहला शब्द है । यह पिच्चासी (गाथा) अपने चलती है न ? छियासी में है । पण्डितजी ! छियासी है न ? यह गाथा एक्कलउ यह छियासी गाथा है । अपने पिच्चासी चलती है। एक्कलउ इंदिय रहियउ अकेला इंदिय रहियउ भगवान ! योगसार तो अलौकिक बात । दिगम्बर सन्तों की क्या बात ! ओ... हो... ! इनके तो एक-एक श्लोक में चौदह पूर्व का सार है । सन्त, जिनकी अन्तरदशा छठवें - सातवें ... आहा...हा...! क्षण में अन्तर्मुहूर्त में, यह अन्तर्मुहूर्त अर्थात् पौन सेकेण्ड कहलाता है । असंख्य समय को भी अन्तर्मुहूर्त कहते हैं, छोटे को । परन्तु वह पौन सेकेण्ड रहा । परन्तु अन्तर्मुहूर्त कहलाता है, असंख्य समय है। पौन सेकेण्ड में भी असंख्य है, हाँ ! और इससे आधा काल सातवें का । क्षण में अतीन्द्रिय आनन्द, क्षण में यह (विकल्प) ; क्षण में यह (आनन्द) । एक दिन में हजारों बार छठा - सातवाँ यह भी कोई बात ! प्रतिक्षण साक्षात् परमात्मा का स्पर्श करते हैं, वह तो फिर मन्द पुरुषार्थ है, इसीलिए शीघ्र विकल्प उठता है । छठवें का प्रमाद विकल्प वह बन्ध का कारण है । इतम... इतम... ऐसा जाता है। ऐसे जाए वहाँ सातवाँ, ऐसी दशा मुनि की। उन्होंने यह श्लोक बनाये हैं, लो ! बनाये हैं अर्थात् उनका निमित्त है। समझ में आया ? वही निश्चय कायोत्सर्ग है... कहो, ठीक! यह तीन गुप्ति भी यह है, भगवान आत्मा! अपने निज स्वरूप में अन्दर में सावधान... सावधान... सावधान... होकर, दृष्टि
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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