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________________ १५२ गाथा-८४ स्याद्वाद विद्या के बल से विशुद्धज्ञान की कला से यह एक सम्पूर्ण शाश्वत् स्व तत्त्व को प्राप्त करके आज ही (जनों) अव्याकुलरूप से नाचो।( परमानन्द परिणाम से परिणमो)। प्रभु! आज ही, आज ही शब्द है। दूसरे में (श्लोक २२ में) भी ऐसा लिया है। आज ही प्रबलरूप से उग्ररूप से अनुभव करो... उस चैतन्य को ही चैतन्य आज ही प्रबलरूप से उग्ररूप से अनुभव करो... वहाँ आज है। अनुभवतु तदुच्चैंश्चिच्चिदेवाद्य यस्माद् अन्तिम श्लोक में है। आज, दूसरा समय क्या? आहा...हा...! वायदा करता है, वह कर्जदार वायदा करते हैं न! पचास हजार का कर्जा होवे तो किस्त करते हैं न? किस्त अर्थात् क्या? एक महीने पाँच सौ भरूँगा, दूसरे महीने पाँच सौ भरूँगा। हफ्ता ! नहीं, यह वायदा है। साहूकार ऐसा करेगा? (वह तो यह कहेगा) ले, ले जा... ऐसे भगवान आत्मा ऐसे पूर्णानन्द से भरपूर अभेद प्रभु, वह किसी का कर्ता-हर्ता नहीं है - ऐसा अभी स्वीकार ले, वायदा नहीं। वायदा कैसा? भगवान (आत्मा) के स्वरूप में वायदा है ? समझ में आया? (यहाँ कहते हैं कि) यह आत्मा परम निराकुल और समभावधारी परम पवित्र, निश्चल रहनेवाला है। वह परमपदार्थ परमात्मा है। मैं ऐसा ही हूँ, ऐसा निश्चय अनुभवपूर्वक होना, वही सम्यग्दर्शन गुण का प्रगट होना है। कल्पना से नहीं, बाहर से नहीं, शास्त्र की धारणा से नहीं, शास्त्र के ज्ञान से नहीं... आहा...हा...! अन्तर भगवान आत्मा, ऐसे पूर्ण स्वरूप का अन्तर अनुभव करके सम्यग्दर्शन गुण का प्रगटना है। वह मिथ्यात्व कर्म और अनन्तानुबन्धी कषाय के उपशम बिना नहीं होता। वह सम्यग्दर्शन मिथ्यात्वकर्म और अनन्तानुबन्धी का उपशम (होवे तब होता है) यह जब सम्यग्दर्शन होता है, तब वहाँ उपशम होता ही है । न हो ऐसा नहीं होता। शास्त्रों को ठीक-ठीक जानने पर भी जहाँ तब स्वानुभव न हो वहाँ तक ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं कहलाता है। शास्त्र के ज्ञान को बराबर समझता हो परन्तु वह भी पर ज्ञान है। अभी तो शास्त्र के ज्ञान का ठिकाना नहीं। अरे... भगवान ! कठिनता से थोड़ा समय मिला, अनन्त काल में यह समय बहुत थोड़ा समय है, हाँ! मनुष्यपने का समय बहुत थोड़ा है, भाई! महा कठिनता से समय मिला इसमें फिर ऐसे का ऐसे रुक जायेगा
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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