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________________ १४६ गाथा-८४ एकाकी अकेला है, पर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। उसमें न आठ कर्म का बन्ध है... ऐसा एकाकी देखना है न! अकेला तो फिर आएगा परन्तु इन्होंने यहाँ अर्थ किया है, वरना अकेला आएगा। ८६ (गाथा में)। ८६ में तो स्पष्ट 'अकेला' शब्द ही आएगा। ८६वीं गाथा में (कहेंगे) एक्कलउ इंदिय रहियउ इसलिए यहाँ से अकेला लेना है न! ८६ में पहला शब्द यह है। भगवान आत्मा को ऐसा देखना कि जिसमें आठ कर्मों का सम्बन्ध नहीं है। न इसमें रागादि विकारी भाव है, न कोई स्थूल औदारिक व वैक्रियक शरीर है। यह आत्मा शुद्ध स्फटिकमणि के समान परम निर्मल है। ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुणों का सागर है। यह आत्मा न किसी का उपादानकारण है, न किसी का निमित्तकारण है। भगवान आत्मा किसी का कारण नहीं है और किसी का कार्य नहीं है - ऐसा उसका अनादि-अनन्त गुण है। आत्मा में अकार्यकारण नाम का गुण अनादि-अनन्त है। ऐसा एक गुण है तो सब गुण ऐसे हैं और पूरा द्रव्य ऐसा है। समझ में आया? अध्यात्म की अन्दर की बातें जरा ग्राह्य होने को पुरुषार्थ बहुत चाहिए, तब ख्याल में आता है। आहा...हा...! है? वस्तु, वस्तु किसी की निमित्त कहाँ होगी? वस्तु के स्वभाव में अकार्यकारण नाम की शक्ति अनादि-अनन्त पड़ी है। जैसे, भगवान आत्मा में ज्ञानगुण है, आनन्दगुण है, अस्तित्वगुण है, ऐसे अकार्य-कारण नाम का त्रिकाल उसमें रहा हुआ गुण अनादि अनन्त है। वह द्रव्य वस्तु, गुण वस्तु और उसकी पर्याय, हाँ! किसी का कार्य नहीं और वह पर्याय किसी का कारण नहीं । आहा...हा...! क्यों? कि अकार्य-कारण नाम का गुण है – ऐसी जब द्रव्यदृष्टि हुई तो द्रव्य में अनन्त गुण है तो अकार्यकारण गुण का भी परिणमन हुआ। क्या कहा, समझ में आया? सैंतालीस शक्ति जो प्रकाशित होगी वह बहुत अच्छी निकलेगी। आत्मप्रसिद्धि में छपे हैं परन्तु अभी सैंतालीस शक्तियों के व्याख्यान हुए हैं, वे बहुत अच्छे हुए हैं। धीरे-धीरे बाहर आयेंगे। सैंतालीस शक्तियाँ नयी छपेगी। आत्मा में अकार्य-कारण नाम का गुण है, ऐसे गुण का धारक द्रव्य है, ऐसे अखण्ड अभेद द्रव्य की दृष्टि हुई तो जितने अनन्त गुण हैं, उन सभी गुणों का परिणमन उनकी पर्याय में आया। द्रव्य अकार्यकारण है, गुण अकार्यकारण है, पर्याय भी अकार्यकारण है। आहा...हा...! समझ में आया?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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