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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) १४३ चारित्र है। लो, इतना तो इस श्लोक का शब्दार्थ हुआ। फिर भाई ने 'शीतलप्रसादजी' ने जरा (भावार्थ लिखा है)। अपने आत्मा का यथार्थ स्वरूप जानकर उसका श्रद्धान करना चाहिए। थोड़ी साधारण बात की है। यह आत्मद्रव्य परिणमनशील है... यह आत्मा द्रव्य है, वस्तु है और वर्तमान परिणमन है, परिणमन अर्थात् पलटता स्वभाव है; पलटना उसका स्वभाव है। गुणों का समूह है... भगवान आत्मा अनन्त गुणों का पिण्ड है। आता है या नहीं? ऐई...! कहाँ (आता है)? 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' । द्रव्य किसे कहना? यह तो पहली व्याख्या है। गुणों के समूह को। गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। जैन सिद्धान्त प्रवेशिका... है? द्रव्य किसे कहते हैं ? गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं – ऐसा जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में आता है। वही यहाँ कहा है। देखो! गुणों का समूह वह द्रव्य है। द्रव्य तो एक है, गुण का समूह कहा है न? समूह, गुणभेद है, वह अलग बात, एक-एक गुण की दृष्टि करने से तो खण्ड-खण्ड होता है। गुणों का समूह वस्तु है, एकरूप वस्तु है। गुणों में स्वभाव परिणमन होना, वह द्रव्य का धर्म है। उन गुणों में, पर्याय में -अवस्था में स्वभाव परिणमन होना, वह द्रव्य का धर्म है, पर्याय का, हाँ! परिणमनशक्ति से ही गुणों की समय-समय पर्यायें होती हैं। बदलने के कारण से वह पर्यायधर्म आत्मा का स्वभाव है। अपना पर्यायधर्म है, पलटना धर्म है, क्षणिक पर्याय में पलटना। तो कहते हैं समय-समय पर्याय होती है। व्यवहार से यह आत्मा कर्मसहित मलिन दिखता है। व्यवहार से संयोग दिखता है। स्वभावनय से नहीं, वह निश्चय है। कर्मों के संयोग से चौदह गुणस्थान और चौदह मार्गणारूप आत्मा की जो अवस्थाएँ होती हैं, वे आत्मा का निजशुद्ध स्वभाव नहीं है। वह भेद है, आश्रय करने योग्य नहीं है। भूतार्थ एकरूप स्वभाव है। गुणस्थान अभूतार्थ है । अभूतार्थ का अर्थ 'नहीं है' ऐसा नहीं है। आश्रय करने योग्य नहीं है। क्षणिक अवस्था है, इस अपेक्षा से उसे अभूतार्थ निश्चय की अपेक्षा से कहा है। जब शुद्धनिश्चय से जाना जाए तो यह आत्मा यथार्थ में जैसा मूल द्रव्य है वैसा जानने में आता है। भेद नहीं, चौदह गुणस्थान आदि व्यवहारनय का विषय है
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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