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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) १२३ ___ जैसे कोई प्रवीण पुरुष... प्रवीण पुरुष। अपने अन्दर होनेवाले रोगों को पहचानकर... अपने शरीर में अन्दर रोगादि हों और ख्याल में आ जाये कि अन्दर में रोग है। यहाँ दुखता है या ऐसा होता है - ऐसा नहीं कहते? रोगों को पहचानकर... कितने ही (रोगों को) डॉक्टर खोज नहीं कर सके परन्तु रोगी तो जानता है या नहीं कि मुझे रोग है, अन्दर में दुःख है। मैं भी कुछ पकड़ नहीं सकता परन्तु अन्दर दुःख होता है, अन्दर में गहरे... गहरे... गहरे... दुःख होता है। ऐसे रोगों को पहचानकर और उनसे अपना अहित होता जानकर उन रोगों के प्रति सम्पूर्ण उदासीन हो जाता है... रोगों से उदासीन हो जाता है या रोग का आदर करता है ? है ? इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव विशिष्ट कर्मों के संयोग से होनेवाले रागादिभाव और शरीरादि रोगों को रोग और आत्मा के लिए हानिकारक जानकर... देखो! मिथ्यादृष्टि राग से लाभ मानते हैं और शरीरादि बाह्य साधन को अपने में साधन मानते हैं। सम्यग्दृष्टि, अपने में राग होता है, उसे दु:ख / रोग जानता है और रोग के त्याग का उपाय करता है। रोग रखने का उपाय नहीं करता। रहने दो, रोग रहने दो ऐसा करता है ? मुमुक्षु : शरीर के लिए क्या मानता है ? उत्तर : शरीर के लिए जड़, अपने से भिन्न लकड़ी है – ऐसा मानता है। पहले आ गया है कि मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है । न पुद्गल के किसी परमाणु या स्कन्ध के साथ (सम्बन्ध ) है। लकड़ी, लकड़ी। जैसे लकड़ी है, वैसे शरीर है। मेरे आत्मा की चीज में उसका कोई स्पर्श नहीं है। आहा...हा... ! अज्ञानी को शरीर में जरा (कुछ होवे तो ऐसा मानता है कि) अरे... ! मुझे हुआ, मुझमें हुआ। मुझे हुआ और मुझमें हुआ (ऐसा मानता है)। तुझमें कहाँ होता है ? वह तो जड़ में है। समझ में आया? यह तो परभावों का त्याग ही संन्यास... है, यह (बात) चलता है न? परभावों का त्याग ही संन्यास... है। पहले यह स्पष्ट किया। जैसे अज्ञानी रोग को रोग जानकर रोग का त्याग करने का उपाय करता है, वैसे ही धर्मी निरोग आत्मा... 'आरोग्य वोहि लाभं' ऐसा आता है, 'लोगस्स' में आता है – 'आरोग्य वोहि लाभं' मेरा आरोग्यपना बोधिलाभ है। मैं शुद्ध चैतन्य रागरहित
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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