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________________ योगसार प्रवचन ( भाग - १ ) ज्ञान हो सकता है कि यह छोड़ने योग्य अथवा लक्ष्य करने योग्य नहीं है। अब गृहस्थाश्रम में जो रागादि के, धन्धे के परिणाम होते हैं, उनसे अधिकपने चैतन्य अन्दर अनन्त गुण का धाम विराजमान है, उसे उपादेयरूप से स्वीकार करके राग को हेयरूप से स्वीकार किया जा सकता है - ऐसा कहते हैं। समझ में आया ? उसे राग में रस नहीं रहता, व्यापार में रस नहीं रहता - ऐसा कहते हैं । १२९ मुमुक्षु • धन्धे में रस न ले तो रुपये किस प्रकार कमाये ? उत्तर - धूल में भी पैसा कमाता नहीं, कौन कमाता है ? यह कमाता है ? यह तो पुण्य के कारण आते हैं, आना हो तो आते हैं, न आना हो तो नहीं आते हैं। कैसे होगा इसमें ? बहुत ध्यान रखे तो आते होंगे न भण्डार में ? नहीं ? - उसमें तो ढेर मजा आता है । मुमुक्षु उत्तर धूल में क्या आवे ? कहो, समझ में आया इसमें ? यहाँ तो कहते हैं, दो बात - एक तो तू और एक तुझसे विरुद्ध विकार और दूसरी जाति जड़ । अब, गृहस्थाश्रम में यह दो चीजें और तीन है या नहीं ? धन्धा व्यापार होने पर भी आत्मा अन्दर से चला गया है ? यह धन्धा के परिणाम दुःखरूप हैं, हेयरूप हैं, आदरणीय नहीं हैं - ऐसा उनका ज्ञान इसे करना चाहिए ? और इससे रहित त्रिकाल ज्ञायकमूर्ति चिदानन्द शुद्ध हूँ । उसका अन्तर्मुख होकर आदर करना चाहिए। ऐसा गृहस्थाश्रम में क्यों नहीं होगा ? गृहस्थाश्रम में धन्धे के काल में भी आत्मा भिन्न पड़ा है - ऐसा कहते हैं। ए... हरिभाई ! धन्धे के काल के परिणाम में और क्रिया के धन्धे के काल में, धन्धे की क्रिया जड़ की, जड़ की होगी या क्या होगी ? रतिभाई ! यह सब तो जड़ की क्रिया है । यह कहाँ तुम करते हो? ऐसा हिलना - चलना (होता है), वह सब जड़ की क्रिया है, आत्मा उसे नहीं करता है। - वह तो मूढ़ है, यह तो कहता है गृहस्थाश्रम में तू रहा है, फिर तू न माने और नहीं कर सकता, उसे माने..... तुझसे दूर जा तो वह तेरी भूल के कारण है। समझ में आया ? हम यह खतौनी लिखते हैं, हम दुकान की व्यवस्था करते हैं, दुकान चले, उसमें ध्यान रखते हैं तो दुकान व्यवस्थित चलती है।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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