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________________ (१७) सह-अस्तित्व की भावना एवं सहिष्णुता अति आवश्यक है। महावीर ने जनसाधारण में संभावित शारीरिक हिंसा को कम करने के लिए सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और समताभाव पर जोर दिया, तो वैचारिक हिंसा से बचने के लिए अनेकान्त का समन्वयात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया। ___ महावीर की अहिंसा के अनेक रूप हैं। अनेकान्त, स्याद्वाद और अपरिग्रह अहिंसा के ही रूपान्तर हैं। अहिंसा की ही दिव्य-ज्योति विचार के क्षेत्र में अनेकान्त, वचन-व्यवहार के क्षेत्र में स्याद्वाद और सामाजिक तथा आत्मशान्ति के क्षेत्र में अल्पपरिग्रह या अपरिग्रह के रूप में प्रकट होती है। भगवान महावीर ने सदा ही अहिंसात्मक आचरण पर जोर दिया है। जैन आचरण छूआछूत-मूलक न होकर, जिसमें हिंसा न हो या कम से कम हिंसा हो, के आधार पर निश्चित होता है। पानी छान कर पीना, रात्रि-भोजन नहीं करना, मद्य-मांस का सेवन नहीं करना आदि समस्त आचरण, अहिंसा को लक्ष्य में रखकर ही अपनाये गये हैं। हिंसा और अहिंसा की जैसी सूक्ष्म व्याख्या भगवान महावीर ने की है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। वे कहते हैं : . (आर्या) अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति। तेषामेवोत्पत्तिः हिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः।।' आत्मा में मोह-राग-द्वेष भावों की उत्पत्ति नहीं होना अहिंसा है और उनकी उत्पत्ति होना ही हिंसा है। यही जिनागम का सार है। १. आचार्य अमृतचन्द्र : पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक ४४
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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