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________________ (१६) हे भगवान महावीर ! आपका सर्वोदय तीर्थ सापेक्ष होने से सर्व धर्मों ' को लिए हुए है। इसमें मुख्य और गौण की विवक्षा से कथन है; अतः कोई विरोध नहीं आता; किन्तु अन्य वादियों के कथन निरपेक्ष होने से सम्पूर्णतः वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन करने में असमर्थ हैं । आपका शासन (तत्त्वोपदेश) सर्व आपदाओं का अन्त करने और समस्त संसारी प्राणियों को संसार-सागर से पार करने में समर्थ है; अतः सर्वोदय तीर्थ है। भगवान महावीर का सर्वोदय, वर्गोदय के विरुद्ध एक वैचारिक क्रांति है। जिसमें सब का उदय हो वही सर्वोदय है। वे मानव मात्र का ही नहीं, प्राणीमात्र का उदय चाहते थे।धर्म के सर्वोदय स्वरूप का तात्पर्य सर्व जीव समभाव और सर्व जाति समभाव से है। सब जीवों की उन्नति के समान अवसरों की उपलब्धि ही सर्वोदय है। दूसरों का बुरा चाहकर कोई अपना भला नहीं कर सकता है। सामाजिक जीवन में विषमता रहते कभी कोई वर्ग सुखी और शान्त नहीं रह सकता । यह कदापि नहीं चल सकता कि एक ओर तो असीम भोग-सामग्री सहज ही उपलब्ध हो और दूसरी ओर श्रम करते हुए भी जीवनयापन के लिए आवश्यक वस्तुएँ भी उपलब्ध न हो सकें। __उसके लिए भगवान महावीर ने अपरिग्रह और अल्पपरिग्रह की व्यवस्था को उपादेय कहा, पर उक्त व्यवस्था की स्थापना अहिंसात्मक ढंग से ही होनी चाहिए। भगवान महावीर ने अहिंसा को परम धर्म घोषित किया है। सामाजिक जीवन में विषमता रहते अहिंसा नहीं पनप सकती। अतः अहिंसा के सामाजिक प्रयोग के लिए जीवन में समन्वय-वृत्ति, १. सामान्य-विशेष, द्रव्य-पर्याय, विधि-निषेध, एक-अनेक आदि
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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