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________________ का तथा दुर्भाग्य से बचने का मार्ग है। यहाँ किसी को प्रश्न हो कि हमें तो अमुक देव-देवी की कृपा तथा उनके दर्शन-भक्ति करने से ही सुख प्राप्त होता दिखायी देता है, तो उन्हें हमारा उत्तर यह है कि वह सुख आपके पूर्व पुण्य का ही फल है। यदि आपके पाप का उदय हो तो कोई भी देव-देवी उसे पुण्य में बदलने के लिए शक्तिमान नहीं है। पुण्य का फल मांगना, वह निदान शल्यरूप होने से, बहुत अधिक पुण्य का अल्प फल मिलता है और वह सुख भोगते समय नियम से बहुत ही पाप बँधते हैं, जो कि भविष्य के दुःखों के जनक (कारण) बनते हैं। इसलिए मांगों या न मांगो, आपको आपके पूर्व पुण्य-पाप का फल अवश्य ही मिलता है, यही शाश्वत नियम होने पर भी, मांग कर पाप को आवकार - आमंत्रण ( BOOKING, INVITATION ) किस लिए देना? अर्थात् मांगना ही नहीं, कभी नहीं मांगना । इससे एक बात तो निश्चित ही है कि अपने को जो कुछ भी दुःख आता है, उसमें दोष अपने पूर्व पापों का ही होता है, अन्य किसी का भी नहीं। जो अन्य कोई दुःख देते ज्ञात होते हैं, वे तो मात्र निमित्तरूप ही हैं। उसमें उनका कुछ भी दोष नहीं है। वे तो आपको, आपके पाप से छुड़ानेवाले ही हैं; तथापि ऐसी समझ न होने से, आपको निमित्त के प्रति जरा सुखी होने की चाबी ३
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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