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________________ अच्छा बनाना हो, उन्हें पुण्य की अत्यंत आवश्यकता है और साथ में पाप से बचने की भी अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि पाप तथा पुण्य आमने-सामने बराबर नहीं होते, दोनों अलगअलग भोगने पड़ते हैं। पाप का फल दु:खरूप होता है, जो कि कोई भी जीव नहीं चाहता, यदि दुःखरूप फल जीव नहीं चाहता तो उसके जनकरूप पाप किस प्रकार आचरेगा? अर्थात् नहीं आचरना चाहिए। कभी नहीं आचरना चाहिए। इसलिए सौभाग्य बनाने के लिए तथा दुर्भाग्य से बचनेदुर्भाग्य घटाने के लिए, दैनिक जीवन में जो कोई बड़े पाप होते हैं, वे बंद करने आवश्यक हैं। जैसे कि कंदमूल भक्षण, रात्रिभोजन, सप्त महाव्यसन (जुआ, शराब, मांस, वेश्यागमन, चोरी, शिकार और परस्त्रीगमन अथवा परपुरुषगमन) तथा अभक्ष्य भक्षण जैसे कि आचार, मद्य, माखन इत्यादि तथा अन्याय अनीति से अर्थोपार्जन करना। ऐसे बड़े पाप बंद करते ही नये दु:खों का आरक्षण बंद हो जायेगा और पुराने पापों का पश्चात्ताप करने से, क्रोध, मान, माया, लोभ कम करने से (परंतु भावना पूर्ण छोड़ने की रखनी अर्थात् भावना वीतरागी बनने की रखनी) तथा बारह/सोलह भावना का चिंतन करने से नये पुण्य का बंध होता है तथा पुराने पापों का बंध शिथिल होता है अर्थात् पुराने पाप कमजोर होते हैं, यही सौभाग्य बनाने २. सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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