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________________ विषय में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, जाने, अनजाने में, मन, वचन, काया से जो कोई पाप दोष का सेवन किया हो, तो अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवंतों की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं! गत काल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल का संवर और आनेवाले काल का पच्चक्खाण। उसके विषय में जो कोई पाप दोष लगा हो, तो अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवंतों की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं ! सम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था । सत्य की श्रद्धा, गलत का बारंबार मिच्छामि दुक्कडं । देव अरिहंत, गुरु निर्ग्रथ, केवली भाषित दयामय धर्म। ये तीन तत्त्व सार, संसार असार । भगवंत! आपका मार्ग सत्य है । तमेव सच्चं ! तमेव सच्चं ! करेमि मंगलं, महामंगलं, थव थुइ मंगलं । पहेला नमोत्थुणं श्री सिद्ध भगवंतों को करता हूँ। मोत्थुणं! अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर पुंडरियाणं, पुरिसवर गंध हत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोग नाहाणं, लोग हियाणं, लोग पइवाणं, लोग पज्जोयगराणं, अभय दयाणं, चक्खु दयाणं, मग्ग दयाणं, सरण दयाणं, जीव दयाणं, बोहि दयाणं, धम्म दयाणं, धम्म देसयाणं, धम्म नायगाणं, धम्म सारहिणं, धम्मवर २६ सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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