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________________ इसलिए सम्यग्दर्शन के लिए आवश्यकता, वह ध्यान नहीं परंतु शास्त्र से भली प्रकार निर्णीत किया हुआ तत्त्व का ज्ञान और सम्यग्दर्शन के विषयरूप शुद्धात्मा का ज्ञान है। उस शुद्धात्मा में 'मैंपना' करते ही स्वात्मानुभूतिरूप सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। इसलिए इस मानवभव में यदि कुछ भी करने योग्य हो तो वह एकमात्र निश्चय सम्यग्दर्शन ही प्रथम प्रथम प्राप्त करने योग्य है। जिससे स्वयं को मोक्षमार्ग में प्रवेश मिले और पुरुषार्थ स्फुरायमान होने पर आगे सिद्धपद की प्राप्ति हो, जो कि अव्याबाध सुखस्वरूप है कि जिससे शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है। सर्व जनों को ऐसे शाश्वत सुख की प्राप्ति हो - ऐसी भावना के साथ.... जिन-आज्ञा से विरुद्ध हम से कुछ भी लिखा गया हो तो त्रिविध-त्रिविध हमारे मिच्छामि दुक्कडं ! ॐ शांति ! शांति ! शांति ! नोट : जिन्हें सम्यग्दर्शन के संदर्भ में विस्तार से जानना हो, उन्हें लेखक के अन्य लेख पढ़ने का निवेदन है। १८ सुखी होने की चाबी
SR No.009477
Book TitleSukhi hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailesh Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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