SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैं कौन हूँ? कोई भी कुछ नहीं देता। अनन्यमन से ऐसा विचार करके कोई किसी को कुछ देता है - ऐसी बुद्धि (मान्यता) छोड़ दो। अतः सिद्ध है कि किसी भी द्रव्य में पर का हस्तक्षेप नहीं चलता। हस्तक्षेप की भावना ही आक्रमण को प्रोत्साहित करती है। यदि हम अपने मन से पर में हस्तक्षेप करने की भावना निकाल दें तो फिर हमारे मानस में सहज ही अनाक्रमण का भाव जग जायेगा। आक्रमण-प्रत्याक्रमण को जन्म देता है। यह आक्रमण-प्रत्याक्रमण की स्थिति ऐसे युद्ध को प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे मात्र विश्वशान्ति ही खतरे में न पड़ जाये, अपितु विश्व प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अतः विश्व शान्ति की कामना करने वालों को तीर्थंकर महावीर द्वारा बताये गये अहस्तक्षेप, अनाक्रमण और सहअस्तित्व के मार्ग पर चलना आवश्यक है, इसमें ही सबका हित निहित है। आचार्य समन्तभद्र ने भगवान महावीर के धर्मतीर्थ को सर्वोदय तीर्थ कहा है; जो इसप्रकार हैसर्वान्तवत् तद्गुणमुख्यकल्पम्, ___ सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तम्, सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ।।' आपकी वाणीरूप तीर्थ सभी आपदाओं का अन्त करनेवाला है, किसी के द्वारा खण्डित नहीं किया जा सकता; इसकारण अखण्डित है, अनन्त धर्मयुगलों में मुख्य-गौण की कल्पना से विरोध से रहित है और सभी का उदय (कल्याण) करनेवाला होने से सर्वोदयी है। धर्म के सर्वोदय स्वरूप का तात्पर्य सर्व जीव समभाव, सर्व धर्म समभाव और सर्व जाति समभाव से है। सबका उदय ही सर्वोदय है। अर्थात् सब जीवों की उन्नति के समान अवसरों की उपलब्धि ही सर्वोदय है। दूसरों का बुरा चाहकर कोई अपना भला नहीं कर सकता है। १. युक्त्यनुशासन, श्लोक ६१ धार्मिक सहिष्णुता और भगवान महावीर आज हमने मानव मानव के बीच अनेक दीवारें खडी करली हैं। ये दीवारें प्राकृतिक न होकर हमारे ही द्वारा खड़ी की गई हैं। ये दीवारें रंगभेद, वर्ण-भेद, जाति-भेद, कुल-भेद, देश व प्रान्त-भेद आदि की हैं। यही कारण है कि आज सारे विश्व में एक तनाव का वातावरण है। एक देश दूसरा देश से शंकित है और एक प्रान्त दूसरे प्रान्त से। यहाँ तक कि मानव-मानव की ही नहीं, एक प्राणी दूसरे प्राणी की इच्छा और आकांक्षाओं को अविश्वास की दृष्टि से देखता है; भले ही वे परस्पर एक दूसरे से पूर्णतः असंपृक्त ही क्यों न हों, पर एक दूसरे के लक्ष्य से एक विशेष प्रकार का तनाव लेकर जी रहे हैं। तनाव से सारे विश्व का वातावरण एक घुटन का वातावरण बन रहा है। ___ वास्तविक धर्म वह है, जो इस तनाव को व घुटन को समाप्त करे या कम करे । तनावों से वातावरण विषाक्त बनता है और विषाक्त वातावरण मानसिक शान्ति भंग कर देता है। तीर्थंकर महावीर की पूर्वकालीन एवं समकालीन परिस्थितियाँ भी सब कुछ मिलाकर इसीप्रकार की थीं। तीर्थंकर महावीर के मानस में आत्मकल्याण के साथ-साथ विश्वकल्याण की प्रेरणा भी थी और इसी प्रेरणा ने उन्हें तीर्थंकर बनाया। उनका सर्वोदय तीर्थ आज भी उतना ही ग्राह्य, ताजा और प्रेरणास्पद है; जितना उनके समय में था। उनके तीर्थ में न संकीर्णता थी और न मानवकृत सीमायें। जीवन की जिस धारा को वे मानव के लिए प्रवाहित करना चाहते थे, वही वस्तुतः सनातन सत्य है। धार्मिक जड़ता और आर्थिक अपव्यय रोकने के लिए महावीर ने क्रियाकाण्ड और यज्ञों का विरोध किया। आदमी को आदमी के निकट लाने के लिए वर्णव्यवस्था को कर्म के आधार पर बताया । जीवन जीने के लिए अनेकान्त की भावभूमि, स्यावाद की भाषा और अणुव्रत का आचार-व्यवहार दिया और मानव व्यक्तित्व के चरम विकास के लिए कहा कि ईश्वर तुम्ही हो, अपने आपको पहिचानों और ईश्वरीय गुणों का विकास कर ईश्वरत्व को पाओ।
SR No.009476
Book TitleSukh kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy