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________________ मैं कौन हूँ? अनेकान्त और स्याद्वाद श्री प्रो. आनन्द शंकर बाबूभाई ध्रुव लिखते हैं ह्र “महावीर के सिद्धान्त में बताये गये स्याद्वाद को कितने ही लोग संशयवाद कहते हैं, इसे मैं नहीं मानता । स्याद्वाद संशयवाद नहीं है; किन्तु वह एक दृष्टि-बिन्दु हमको उपलब्ध करा देता है। विश्व का किस रीति से अवलोकन करना चाहिए ह्र यह हमें सिखाता है। यह निश्चय है कि विविध दृष्टि-बिन्दुओं द्वारा निरीक्षण किये बिना कोई भी वस्तु सम्पूर्ण स्वरूप में नहीं आ सकती। स्याद्वाद (जैनधर्म) पर आक्षेप करना यह अनुचित है।" आचार्य समन्तभद्र ने स्याद्वाद को केवलज्ञान के समान सर्वतत्त्वप्रकाशक माना है। भेद मात्र प्रत्यक्ष और परोक्ष का है। ___ अनेकान्त और स्याद्वाद का सिद्धान्त वस्तुस्वरूप के सही रूप का दिग्दर्शन करनेवाला होने से आत्मशान्ति के साथ-साथ विश्वशान्ति का भी प्रतिष्ठापक सिद्धान्त है। इस संबंध में सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् एवं राष्ट्रकवि रामधारीसिंह 'दिनकर' लिखते हैं ह्र __ "इसमें कोई सन्देह नहीं कि अनेकान्त का अनुसंधान भारत की अहिंसा साधना का चरम उत्कर्ष है और सारा संसार इसे जितनी ही शीघ्र अपनायेगा, विश्व में शान्ति भी उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी।" इनकी उपयोगिता मात्र विश्वशान्ति की दृष्टि से ही नहीं है; अपितु इनके सही स्वरूप समझने से हमारे दैनिक जीवन में होनेवाले सामाजिक संघर्ष और पारिवारिक झगड़ों की रोकथाम भी हो सकती है; क्योंकि हमारे जीवन में होनेवाले सम्पूर्ण संघर्षों का एकमात्र कारण यह है कि हम हर वस्तु को अपने ही दृष्टिकोण से देखते हैं। यदि हम उक्त वस्तु के संदर्भ में सामनेवाले का जो दृष्टिकोण है, उसे भी समझें, समझने का प्रयास करें तो प्रतिदिन होनेवाले संघर्षों से बहुत कुछ बच सकते हैं। आज के जीवन में पीढ़ियों का अन्तर (जनरेशन गेप) एक बहुत बड़ी समस्या है; क्योंकि सामाजिक परिवेश में जितना परिवर्तन विगत (२०वीं) शताब्दी में हुआ है और आज हो रहा है, उतना परिवर्तन विगत अनेक शताब्दियों में भी नहीं हुआ है। विगत अनेक शताब्दियों तक भारतवासी पगड़ी ही बाँधते रहे। उसके बाद परिवर्तन में अप्रत्याशित तेजी आई और स्थिति यह हो गई कि बाबा पगड़ी बाँधते रहे, पिता टोपी लगाते रहे और पुत्र नंगे शिर होकर नेकटाई पर आ गये; पर आज जो परिवर्तन की रफ्तार है, वह उससे भी तेज है। ___ मैं ऐसे अनेक लोगों को जानता हूँ कि जो लोग बचपन में पगड़ी बाँधते थे, जवानी में टोपी लगाने लगे और बुढ़ापा आते-आते नंगे शिर हो गये। मैंने ऐसे भी घर देखे हैं कि जहाँ ८० वर्ष की बूढी अम्मा चूंघट डालती है, पर प्रौढ़ महिलायें चूंघट की झंझट से मुक्त हो गई हैं; फिर भी उनका माथा साड़ी के पल्लू से कुछ-कुछ ढ़का ही रहता है; पर आधुनिक बहुये तो सलवार शूट में ही नहीं, तंग जीन्स से मंडित दृष्टिगोचर होती हैं। वेष परिवर्तन के अनुरूप विचारों में भी परिवर्तन हो रहा है। इसप्रकार पीढ़ियों के अन्तर (जनरेशन गेप) ने एक विकट रूप धारण कर लिया है। इसप्रकार तेजगति से होनेवाले परिवर्तनों से पीढ़ियों की विचारधारा में जो बहुत बड़ा अन्तर दिखाई दे रहा है; उसके कारण मतभेद भी बहुत बढ़ रहे हैं, जो मनभेद का कारण बनकर गृह कलह और सामाजिक १. तीर्थंकर वर्द्धमान, पृष्ठ ९४ श्री वी.नि.ग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दौर २.स्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्त्वप्रकाशने। भेद:साक्षादसाक्षाच्च, ह्यावस्त्वन्यतमं भवेत् ।। ह्र आप्तमीमांसा, श्लोक १०५ ३. संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ १३७
SR No.009476
Book TitleSukh kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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