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________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर हमारे ये तीर्थस्थान वीतरागियों के स्थान हैं, वैरागियों के स्थान हैं, योगियों के स्थान हैं; उन्हें भोगियों के स्थान बनाना उचित नहीं है, उन्हें भोगियों के स्थानों के समान सजाना भी उचित नहीं है। उन्हें साफ-सुथरा रखना और जीवनोपयोगी आवश्यकताओं से सम्पन्न करना अलग बात है; पर वहाँ मनोरंजन के भी साधन जुटाना, आमोद-प्रमोद के साधन जुटाना, बाग-बगीचा लगाना, अभक्ष्य-भक्षण के साधन जुटाना तथा टी.वी. और वी.सी.आर. का प्रवेश कदापि ठीक नहीं है। ये तो संयम से रहने के स्थान हैं, सादा जीवन जीने के स्थान हैं; यहाँ साज-शृंगार करके जाना, असंयमित जीवन जीना - इनकी गौरव महिमा को कम करनेवाला है। इन्हें तो ध्यान और अध्ययन के केन्द्र बनाना चाहिए। यहाँ तो जैनदर्शन के गहन अध्ययन की व्यवस्था होनी चाहिए। यहाँ तो आध्यात्मिक वातावरण रहना चाहिए, आध्यात्मिक चर्चा-वार्ता होना चाहिए। इनकी गौरव-महिमा इसी बात में है कि जिसप्रकार की आत्मसाधना हमारे तीर्थंकरों और साधुसंतों ने की है; ये तीर्थस्थान भी वातावरण के माध्यम से आज जन-जन को उसी की प्रेरणा दें। तीर्थराज सम्मेदशिखर आज भी आधुनिक चकाचौंध से कोसों दूर है और आत्मकल्याण की पावन प्रेरणा देने में पूरी तरह समर्थ है। इसकी यह पावनता सदा कायम रहे और यह तीर्थराज अनन्त काल तक भव्यजीवों को आत्मकल्याण की पावन प्रेरणा देता रहे- इसी मंगलमय भावना के साथ विराम लेता हूँ।
SR No.009475
Book TitleShashvat Tirthdham Sammedshikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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