SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर मुनिराजों का निर्वाणस्थल होने से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तीर्थराज तो है ही; भविष्य में भी वहाँ से अगणित तीर्थंकर और उनसे भी असंख्यगुणे मुनिराज मोक्ष जावेंगे; अत: यह शाश्वत तीर्थधाम भी है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि जब भरतक्षेत्र में सभी तीर्थंकर सम्मेदखिर से ही मोक्ष जाते हैं तो फिर वर्तमान चौबीसी के चार तीर्थंकर अन्य स्थानों से मोक्ष क्यों गये ? वर्तमान चौबीसी के कुछ तीर्थंकरों का जन्म यदि अयोध्या में नहीं हुआ और निर्वाण सम्मेदशिखर से नहीं हुआ तो इसका एकमात्र कारण हुण्डावसर्पिणी का अपवाद है। असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के बाद एक हुण्डावसर्पिणी काल आता है, जिसमें इसप्रकार के अनेक अपवाद होते हैं। तीर्थंकरों के पुत्री का जन्म होना, चक्रवर्ती का अपमान होना आदि भी इसी हुण्डावसर्पिणी के अपवाद हैं। इस संदर्भ में पार्श्वपुराण का निम्नांकित कथन द्रष्टव्य है - (चौपाई) “अवसर्पनि उतसर्पनि काल होंहि अनंतानंत विशाल। भरत तथा ऐरावत माहिं रहट घटीवत आवे जाहिं।। जब ये असंख्यात परमान बीते जुगम खेत भूथान । तब हुंडावसर्पिणी एक परै करै विपरीत अनेक॥" अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी रूप कालचक्र के स्वरूप को समझने के लिए लेखक की अन्य कृति "तीर्थंकर भगवान महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ" का निम्नांकित कथन उपयोगी है - "समय अपने को दुहराता है, यह एक प्राकृतिक नियम एवं वैज्ञानिक १. कविवर भूधरदास : पार्श्वपुराण, पृष्ठ ६५
SR No.009475
Book TitleShashvat Tirthdham Sammedshikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy