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________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर उक्त छन्दों में यह स्पष्ट किया गया है कि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान कैलाश पर्वत से, बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान चम्पापुर से, बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान गिरनार पर्वत से एवं चौबीसवें तीर्थंकर महावीर भगवान पावापुरी से मोक्ष गये हैं तथा वर्तमान चौबीसी के शेष बीस तीर्थंकर भगवान सम्मेदशिखर से मोक्ष गये हैं। न केवल बीस तीर्थंकर, अपितु असंख्य मुनिराजों ने भी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया है। इसकारण भी यह तीर्थराज महान् है। उक्त संदर्भ में निम्नांकित छन्द भी द्रष्टव्य है - (दोहा) "सिद्ध क्षेत्र तीरथ परम है उत्कृष्ट सुथान । शिखर सम्मेद सदा नमूं होय पाप की हानि ।। अगनित मुनि जहं तें गये लोक शिखर के तीर। तिनके पदपंकज नमूं नाशे भव की पीर॥" सम्मेदशिखर न केवल तीर्थराज है, अपितु शाश्वत तीर्थधाम है; क्योंकि वहाँ से न केवल वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकरों का निर्वाण हुआ है; अपितु अबतक वहाँ से असंख्य तीर्थंकरों व मुनिराजों का निर्वाण हो चुका है और भविष्य में भी अगणित तीर्थंकरों व मुनिराजों का निर्वाण होनेवाला है। ___ यह तो आप जानते ही हैं कि भरतक्षेत्र में अबतक अगणित चौबीसियाँ हो गई हैं और भविष्य में भी होंगी तथा यह सुनिश्चित है कि भरतक्षेत्र के प्रत्येक तीर्थंकर का जन्म अयोध्या में होता है और प्रत्येक ही तीर्थंकर का निर्वाण सम्मेदशिखर से होता है। इसप्रकार यह तीर्थराज अगणित तीर्थंकरों और उनसे भी असंख्यगुणे १. सम्मेदशिखर पूजन, छन्द-१-२
SR No.009475
Book TitleShashvat Tirthdham Sammedshikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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