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________________ (४२) ज्यों श्वेतपन हो नष्ट पट का मैल के संयोग से । चारित्र भी त्यों नष्ट होय कषायमल के लेप से ॥१५९।। सर्वदर्शी सर्वज्ञानी कर्मरज आछन्न हो । संसार को सम्प्राप्त कर सबको न जाने सर्वतः ॥१६०॥ सम्यक्त्व प्रतिबन्धक करम मिथ्यात्व जिनवर ने कहा । उसके उदय से जीव मिथ्यादृष्टि होता है सदा ॥१६१।। सद्ज्ञान प्रतिबन्धक करम अज्ञान जिनवर ने कहा । उसके उदय से जीव अज्ञानी बने - यह जानना ॥१६२।। चारित्र प्रतिबन्धक करम जिन ने कषायों को कहा । उसके उदय से जीव चारित्रहीन हो यह जानना ॥१६३।।
SR No.009473
Book TitleSamaysara Padyanuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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