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________________ 399 कलश पद्यानुवाद एक कहे ना कार्य दूसरा कहे कार्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७९ ॥ एक कहे ना भाव दूसरा कहे भाव है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८० ॥ एक कहे ना एक दूसरा कहे एक है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८१ ॥ एक कहे ना सान्त दूसरा कहे सान्त है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८२ ॥ एक कहे ना नित्य दूसरा कहे नित्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८३ ॥ एक कहे ना वाच्य दूसरा कहे वाच्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८४ ॥ नाना कहता एक दूसरा कहे अनाना, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८५ ॥ एक कहे ना चेत्य दूसरा कहे चेत्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ८६ ॥
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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