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________________ समयसार अनुशीलन 398 एक कहे ना मूढ़ दूसरा कहे मूढ़ है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७१ ॥ एक कहे ना रक्त दूसरा कहे रक्त है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७२ ॥ एक कहे ना दुष्ट दूसरा कहे दुष्ट है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७३॥ एक अकर्ता कहे दूसरा कर्ता कहता, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७४॥ एक अभोक्ता कहे दूसरा भोक्ता कहता, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७५ ॥ एक कहे ना जीव दूसरा कहे जीव है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७६ ॥ एक कहे ना सूक्ष्म दूसरा कहे सूक्ष्म है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७७ ॥ एक कहे ना हेतु दूसरा कहे हेतु है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ॥ ७८ ॥
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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