SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 193 गाथा १२१-१२५ प्रत्येक पदार्थ अपनी उपादानगत योग्यता के कारण ही परिणमित होता है, पर पदार्थ तो उसके परिणमन में निमित्तमात्र ही होते हैं। वे उसे परिणमाते नहीं हैं। यही बात इन गाथाओं और कलशों में स्पष्ट की गई है। तात्पर्य यह है कि पदार्थों का परिणमन उनकी विकृति का सूचक नहीं है, अपितु उनकी स्वभावगत योग्यता का परिणाम है, उनकी परिणामशक्ति का कार्य है। देखो, यहाँ टीका में दो बातें बहुत साफ-साफ कही गई हैं - (१) जिस कार्य को करने की शक्ति स्वयं में न हो तो अन्य के द्वारा वह शक्ति उत्पन्न नहीं की जा सकती। (२) स्वयं का कार्य करने में शक्तियाँ पर की अपेक्षा नहीं रखतीं। इन दोनों सिद्धान्तों के माध्यम से आचार्य यह बात साफ कर देना चाहते हैं कि कार्य परिणामशक्तिरूप उपादान से ही होता है। उक्त सन्दर्भ में स्वामीजी के विचार इसप्रकार हैं - "अब आचार्यदेव कहते हैं कि जीव अपने जिन भावों को करता है, उनका कर्ता वह स्वयं होता है। स्वयं परिणमन करता हुआ जीव अपने जिन परिणामों को करता है, उन परिणामों का कर्ता वह स्वयं होता है। चाहे वे परिणाम मिथ्यात्व व राग-द्वेष के हों या सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के हों; उन परिणामों को जीव स्वयं करता है और स्वयं ही वह अपने परिणामों का कर्ता है। अपने परिणमन में कोई अन्य का हस्तक्षेप नहीं है और अन्य किसी के परिणाम को वह स्वयं करता भी नहीं है। अज्ञानी अज्ञानभाव से राग-द्वेष का कर्त्ता होता है तथा ज्ञानी ज्ञानभाव से ज्ञान का कर्ता होता है। जड़ परमाणुओं का या जड़कर्मों का कर्ता ज्ञानी व अज्ञानी कोई नहीं है। जड़कर्म तो स्वयं अपनी सामर्थ्य से परिणमन करते हैं तथा जीव भी स्वयं अपनी सामर्थ्य से परिणमता है। _ मिथ्यात्व के जो भाव होते हैं, वे स्वयं अपनी योग्यता से अपने कारण होते हैं, किसी कुगुरु के कारण से नहीं। इसीतरह सम्यक्त्व के परिणाम भी स्वयं से सहज होते हैं, किसी सुगुरु के कारण नहीं। निमित्तादि पर कारणों से किसी में कोई भी कार्य कभी भी नहीं होता है।
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy