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________________ 308 समयसार अनुशीलन किसी कर्म (पुण्य) का शुभफलरूप विपाक होता है और किसी कर्म (पाप) का अशुभफलरूप विपाक होता है; इसकारण कर्म के अनुभव (स्वाद) में भेद होता है। कोई कर्म (पुण्य) शुभ मोक्षमार्ग के आश्रित है और कोई कर्म (पाप) अशुभ बंधमार्ग के आश्रित है; इसकारण कर्म के आश्रय में भी भेद है। इसप्रकार यद्यपि कर्म एक ही है; तथापि कई लोगों का ऐसा पक्ष है कि कोई कर्म (पुण्य) शुभ है और कोई कर्म (पाप) अशुभ है; किन्तु उन लोगों का यह पक्ष प्रतिपक्ष सहित है, जिसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है : जीवों के शुभ और अशुभ दोनों ही परिणाम केवल अज्ञानमय होने से एक ही हैं और उनके एक होने से कर्म के कारणों में भेद नहीं रहा; इसकारण कर्म एक ही है। शुभ और अशुभ पुद्गल परिणाम केवल पुद्गलमय होने से एक है और उसके एक होने से कर्म के स्वभाव में भेद नहीं रहा; इसकारण कर्म एक ही है। शुभ या अशुभ फलरूप होने वाला विपाक केवल पुद्गलमय होने से एक है और उसके एक होने से कर्म के अनुभव (स्वाद) में भेद नहीं रहा; इसकारण कर्म एक ही है। शुभ मोक्षमार्ग केवल जीवमय है और अशुभ बंधमार्ग केवल पुद्गलमय है; इसकारण वे अनेक ( भिन्न-भिन्न) हैं और उनके अनेक होने पर भी कर्म केवल पुद्गलमय बंधमार्ग के ही आश्रित होने से कर्म के आश्रय में भेद नहीं है; इसकारण कर्म एक ही है। " इसप्रकार यहाँ पुण्य और पाप में अन्तर है - व्यवहारनय के इस पक्ष को प्रस्तुत कर निश्चयनय द्वारा उसका सयुक्ति खण्डन किया गया है। एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि आश्रय के प्रकरण में शुभ शब्द प्रयोग शुद्ध के अर्थ में किया गया है। उक्त टीका का भाव स्पष्ट करते हुए पण्डित जयचंदजी छाबड़ा में लिखते हैं G भावार्थ
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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