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________________ समयसार अनुशीलन 354 आचार्य जयसेन अपनी तात्पर्यवृत्ति नामक टीका में यद्यपि 'अधिकार' शब्द का प्रयोग करते हैं तथापि साथ में 'रंग' शब्द का प्रयोग भी करते हैं। जैसा कि निम्नांकित कथन से स्पष्ट है - "जीवाधिकारः समाप्तः। इति प्रथमरंगः।" एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि 'इति प्रथमरंगः' यह वाक्य मात्र प्रथमाधिकार के अन्त में ही प्राप्त होता है, आगे के अधिकारों में नहीं। अत: यही प्रतीत होता है कि जयसेन को मूलत: अधिकार शब्द ही इष्ट है। कविवर बनारसीदास कृत नाटक समयसार में 'द्वार' और 'अधिकार' - इन दोनों शब्दों का खुलकर प्रयोग किया गया है । यहाँ तक कि अध्याय के आरंभिक शीर्षकों में भी कहीं 'द्वार' और कहीं 'अधिकार' शब्द का प्रयोग है। जैसे - जीवद्वार, अजीवद्वार, कर्ताकर्म-क्रियाद्वार, पुण्य-पाप एकत्वद्वार। पर आगे आस्रव अधिकार, गुणस्थानाधिकार शब्द के प्रयोग भी हैं । प्रकाशित प्रतियों में यह सब असावधानी से हो गया हो - यदि यह भी मान लें, तो भी छन्दों में भी इसप्रकार के दुहरे प्रयोग मिलते हैं। ऊपर दिये गये दोहे में स्पष्टरूप से अधिकार शब्द का प्रयोग किया गया है। और भी अनेक कथन इसप्रकार के उपलब्ध हैं। जैसे - ( दोहा ) "यह अजीव अधिकार को प्रगट बखानौ मर्म। अब सुनु जीव-अजीव के करता किरिया कर्म ॥१ करता किरिया करम कौ प्रगट बखान्यौ मूल। अब बरनौं अधिकार यह पाप पुन्न समतूल ॥२ १. समयसार नाटक : कर्ता-कर्म-क्रियाद्वार-छन्द-१ २. समयसार नाटक : पुण्य-पाप एकत्वद्वार-छन्द-१
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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