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________________ 353 है? यद्यपि कविवर पण्डित बनारसीदासजी ने आचार्य अमृतचन्द्रकृत आत्मख्याति टीका में समागत कलशों और उनकी राजमलीय बालबोधनी टीका को आधार बनाकर समयसार नाटक की रचना की तथापि अधिकारों के विभाजन में उन्होंने आचार्य जयसेन का ये दो अनुकरण किया है। जीवाधिकार और अजीवाधिकार अधिकार अलग-अलग रखे हैं, जबकि आचार्य अमृतचन्द्र ने जीवाजीवाधिकार ऐसा एक अधिकार ही रखा है। समयसार नाटक के निम्नांकित दोहे से यह बात स्पष्ट होती है ( दोहा ) " जीवतत्व अधिकार यह कह्यौ प्रगट समुझाय । अब अधिकार अजीव कौ सुनहु चतुर चित लाय ॥ " अधिकारों के नामकरण के सन्दर्भ में एक बात विचारणीय है कि आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में अधिकारों के लिए 'अंक' शब्द का उपयोग करते हैं । यद्यपि आत्मख्याति की प्रकाशित प्रतियों में अंकों के आरंभिक शीर्षकों में अधिकार शब्द का प्रयोग किया है; तथापि अमृतचन्द्र को अधिकार शब्द इष्ट प्रतीत नहीं होता; क्योंकि वे इसे नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं और नाटकों में अंक हुआ करते हैं, अधिकार नहीं। आत्मख्याति के अंकों की समाप्ति पर जो पंक्तियाँ उपलब्ध होती हैं, उनमें अंक शब्द का स्पष्ट उल्लेख है । जैसे - कलश ३२ १. समयसार नाटक : अजीवद्वार, छन्द १ — - - "समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ जीवाजीवप्ररूपकः प्रथमोऽङ्कः । समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ कर्तृकर्मप्ररूपकः द्वितीयोऽङ्कः ॥ " आत्मख्याति की प्रकाशित प्रतियों में अधिकार लिखने की परम्परा कब से और क्यों चल पड़ी, कैसे चल पड़ी यह एक शोध का विषय है । -
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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