SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का लोग शिकायत करते हैं कि हमारे बहुत से शास्त्रों को विरोधियों ने जला दिया, बर्बाद कर दिया। कर दिया होगा, पर हमारा कहना यह है कि हमारी ओर से की गई जिनवाणी की उपेक्षा ने ही हमें उससे विलग किया है। आज हमारे बड़े-बड़े विद्वान बड़े गौरव से कहते हैं कि हमारे तीनतीन तीर्थंकर ऐतिहासिक सिद्ध हो गये हैं। शेष तीर्थंकर तो पौराणिक हैं। इस बात को इसप्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि जैसे इतिहास से सिद्ध हो जाना तो प्रामाणिक है और पौराणिक माने पुराणों में लिखा है; उनका अस्तित्व सिद्ध करने के लिए हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है। तात्पर्य यह है कि इतिहास प्रमाण है, पुराण प्रमाण नहीं है। इतिहास जिन लोगों ने लिखा क्या वे सप्त व्यसनों से अछूते थे? जिन शिलालेखों के आधार पर उन्होंने इतिहास रचा है; वे शिलालेख लिखनेलिखानेवाले राजा-महाराजा भी कैसे क्या थे ? हम सभी जानते हैं। उक्त शिलालेखों के आधार पर असदाचारी लोगों द्वारा लिखा गया इतिहास उन्हें प्रमाण लगता है और जीवन भर झूठ न बोलने का सत्य महाव्रत धारण करनेवाले हित-मित-प्रियभाषी सन्तों द्वारा लिखे गये पुराण (प्रथमानुयोग) अप्रमाण हो गये, संदिग्ध हो गये। जिनवाणी के प्रति हमारी यह अनास्था ही जिनवाणी की उपेक्षा है। कलियुग की एकमात्र शरणभूत जिनवाणी माता के प्रति व्यक्त की गई यह अनास्था हमें कहीं का भी नहीं छोड़ेगी। जिनवाणी माता को खतरा हमारी उपेक्षा से है, हमारी अश्रद्धा से है, हमारे अविश्वास से है; किसी दूसरे से नहीं। अन्दर-बाहर के विरोधी कितने शास्त्र जलायेंगे ? आप कह सकते हैं कि दक्षिण भारत में हमारे शास्त्रों की होलियाँ जलाई गईं, उत्तर भारत में भी कहीं-कहीं इसप्रकार के कुकृत्य हमारे ही भाइयों द्वारा हो रहे हैं। किस-किस की बात करें? अरे, भाई ! इन कुकृत्यों से क्या हम शास्त्रविहीन हो गये? नहीं, कदापि नहीं; क्योंकि आज तो जिनवाणी माता घर-घर में पहुँच गई है और निरंतर पहुँच रही है। चौथा प्रवचन दूसरे के मारने से कोई नहीं मरता । शेरों की सुरक्षा की जा रही है; पर उनकी नस्ल समाप्ति की ओर है; गाय माता असुरक्षित है, सभी उसके पीछे पड़े हैं, सरकार कत्लखाने खुलवा रही है; पर उसकी नस्ल समाप्त होने का कोई खतरा नहीं है। शेर हमारे किसी काम का नहीं है, मात्र चिड़ियाघरों की शोभा है; पर गाय हमारे जीवन का मूल आधार है। जबतक उसकी उपयोगिता है, उपयोग होता रहेगा; तबतक वह कायम रहेगी। इसीप्रकार जबतक आत्मार्थीजन जिनवाणी का उपयोग करते रहेंगे; तबतक उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। जब उसका उपयोग बन्द हो जायेगा, स्वाध्याय करनेवाले लोग नहीं रहेंगे, उसका पठनपाठन नहीं होगा; तब उसे कोई नहीं बचा पायेगा। उसके पठन-पाठन की परम्परा चालू रहना ही उसका वास्तविक जीवन है। जब उसे पढ़नेपढ़ानेवाले ही न रहेंगे तो फिर वह सुरक्षित रहकर भी असुरक्षित है। यही कारण है कि स्वाध्याय को परमतप कहा गया है, साधुओं और श्रावकों के आवश्यक दैनिक कार्यों में उसे स्थान प्राप्त है। न केवल जिनवाणी की सुरक्षा के लिए, अपितु अपने आत्मा के कल्याण की भावना से जिनवाणी का स्वाध्याय किया जाना चाहिए, उसका पठन-पाठन चालू रहना चाहिए। यदि हम आत्मकल्याण की भावना से जिनवाणी का स्वाध्याय करेंगे, पठन-पाठन चालू रखेंगे तो वह भी सुरक्षित रहेगी। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि अभी अरहंत भगवान तो इस क्षेत्र में हैं नहीं, शास्त्रों में भी अनेक प्रकार की बातें मिलती हैं और गुरु भी अनेक हैं, अनेक प्रकार के हैं तथा अनेक प्रकार की बातें करते हैं। ऐसी स्थिति में समझ में ही नहीं आता कि क्या पढ़ें, किसे सुने; किसकी बात सही माने? अरे, भाई ! यह समस्या तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। फिर भी हम अपने विवेक से किसी न किसी निर्णय पर पहुँचते ही हैं। __ कपड़ा खरीदना हो, सब्जी खरीदनी हो तो अनेक प्रकार के कपड़े व सब्जियाँ उपलब्ध होने पर भी अपने योग्य सामान खरीदते ही हैं; क्योंकि नंगे-भूखे रहना तो संभव है नहीं।
SR No.009470
Book TitleRahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy