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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि (पद्धरि) हे ज्ञानस्वभावी सीमंधर! तुम हो असीम आनंदरूप। अपनी सीमा में सीमित हो, फिर भी हो तुम त्रैलोक्य भूप।। मोहान्धकार के नाश हेतु, तुम ही हो दिनकर अति प्रचंड। हो स्वयं अखंडित कर्म शत्रु को, किया आपने खंड-खंड।। गृहवास राग की आग त्याग, धारा तुमने मुनिपद महान । आतमस्वभाव साधन द्वारा, पाया तुमने परिपूर्ण ज्ञान ।। तुम दर्शन ज्ञान दिवाकर हो, वीरज मंडित आनंदकंद। तुम हुए स्वयं में स्वयं पूर्ण, तुम ही हो सच्चे पूर्णचन्द ।। पूरब विदेह में हे जिनवर! हो आप आज भी विद्यमान । हो रहा दिव्य उपदेश, भव्य पा रहे नित्य अध्यात्म ज्ञान ।। श्री कुन्दकुन्द आचार्यदेव को, मिला आपसे दिव्य ज्ञान । आत्मानुभूति से कर प्रमाण, पाया उनने आनन्द महान ।। पाया था उनने समयसार, अपनाया उनने समयसार। समझाया उनने समयसार, हो गये स्वयं वे समयसार ।। दे गये हमें वे समयसार, गा रहे आज हम समयसार। है समयसार बस एक सार, है समयसार बिन सब असार ।। मैं हूँ स्वभाव से समयसार, परिणति हो जावे समयसार । है यही चाह, है यही राह, जीवन हो जावे समयसार ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालामहायँ निर्वपामीति स्वाहा। (सोरठा) समयसार है सार, और सार कुछ है नहीं। महिमा अपरम्पार, समयसारमय आपकी ।। (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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