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________________ 168 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि निर्वाणकाण्ड (भाषा) (दोहा) वीतराग वन्दौं सदा, भावसहित सिर नाय । कहूँ काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाय ।। (चौपाई) अष्टापद आदीश्वर स्वामी, वासुपूज्य चम्पापुरि नामी। नेमिनाथ स्वामी गिरनार, बन्दौं भाव-भगति उर धार ।। चरम तीर्थंकर चरम-शरीर, पावापुर स्वामी महावीर । शिखर समेद जिनेसुर बीस, भावसहित बन्दौं निश-दीस ।। वरदत्तराय रु इन्द्र मुनिन्द, सायरदत्त आदि गुणवृन्द । नगर तारवर मुनि उठकोड़ि, बन्दौं भावसहित कर जोड़ि।। श्री गिरनार शिखर विख्यात, कोड़ि बहत्तर अरु सौ सात । शम्भु प्रद्युम्न कुमर द्वै भाय, अनिरुध आदि नमूं तसुपाय ।। रामचन्द के सुत द्वै वीर, लाडनरिन्द आदि गुणधीर । पाँच कोड़ि मुनि मुक्ति मँझार, पावागिरि बन्दौं निरधार ।। पाण्डव तीन द्रविड़-राजान, आठ कोड़ि मुनि मुकति पयान । श्री शत्रुजयगिरि के सीस, भावसहित बन्दौं निश-दीस ।। जे बलभद्र मुकति में गये, आठ कोड़ि मुनि औरहु भये। श्री गजपन्थ शिखर सुविशाल, तिनके चरण न। तिहुँ काल ।। राम हणू सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील महानील। कोड़ि निन्याणव मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वन्दौं धरि ध्यान ।। नंग-अनंगकुमार सुजान, पाँच कोड़ि अरु अर्द्ध प्रमाण । मुक्ति गये सोनागिरि शीश, ते बन्दौं त्रिभुवनपति ईस ।। रावण के सुत आदिकुमार, मुक्ति गये रेवा-तट सार । कोटि पंच अरु लाख पचास, ते बन्दौं धरि परम हुलास ।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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